भारत में महिलाओं की सेहत से जुड़े मुद्दों पर चर्चा अक्सर देर से होती है. कई बार जब समस्या गंभीर रूप ले चुकी होती है, तब जाकर इसका पता चल पाता है. PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) और एंडोमेट्रियोसिस ऐसे ही दो हेल्थ इश्यूज हैं जिनका सामना लाखों महिलाएं कर रही हैं. इसकी जागरूकता की कमी के चलते इसे अनदेखा किया जाता है. WHO के अनुसार दुनिया में 10 में से एक महिला PCOS से ग्रस्त है और भारत में करीब 25% महिलाएं इससे प्रभावित हैं. इसी तरह, एंडोमेट्रियोसिस से दुनियाभर में 190 मिलियन महिलाएं जूझ रही हैं. 

PCOS और एंडोमेट्रियोसिस है क्या

PCOS एक हार्मोनल डिसऑर्डर है, जिसमें महिलाओं के शरीर में एंड्रोजन हार्मोन (पुरुष हार्मोन) का स्तर बढ़ जाता है. इसके कारण अनियमित पीरियड्स, मुंहासे, वजन बढ़ना और इनफर्टिलिटी जैसी समस्याएं होती हैं.  वहीं एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी क्रॉनिक बीमारी है, जिसमें यूटेरस की अंदरूनी लाइनिंग (एंडोमेट्रियम) बाहर फैलने लगती है, जिससे तेज दर्द, अनियमित मासिक धर्म और इनफर्टिलिटी की समस्या होती है. 

क्यों इसे ‘साइलेंट हेल्थ क्राइसिस’ कहा जाता है?
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह जागरूकता की कमी है, क्योंकि अधिकतर महिलाएं इन लक्षणों को सामान्य मानती हैं और डॉक्टर से परामर्श नहीं लेतीं. इसके अलावा गलत डायग्नोसिस भी एक बड़ी वजह है, क्योंकि PCOS और एंडोमेट्रियोसिस का सही से निदान करने में वर्षों लग जाते हैं, जिससे महिलाओं की सेहत और बिगड़ जाती है. 
इन समस्याओं के लगातार बने रहने से महिलाओं की मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर पड़ता है. एक रिसर्च के अनुसार PCOS से ग्रस्त 60% महिलाओं में एंग्जायटी और डिप्रेशन के लक्षण पाए गए हैं. वहीं, उपचार की सीमित जानकारी होने के कारण अधिकतर महिलाएं पारंपरिक इलाज पर निर्भर रहती हैं, जिससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं मिलता. इस तरह ये समस्याएं एक साइलेंट क्राइसिस बन जाती हैं. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?  
लेडी हार्ड‍िंग मेड‍िकल कॉलेज दिल्ली के स्त्री व प्रसूति रोग विभाग की पूर्व हेड ऑफ डिपाटमेंट डॉ. मंजू पुरी के अनुसार, ‘PCOS सिर्फ एक गाइनेकोलॉजिकल समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरी बॉडी को प्रभावित करता है. बेहतर लाइफस्टाइल यानी सही डाइट और एक्सरसाइज से इसे कंट्रोल किया जा सकता है.’

डॉ. पुरी आगे बताती हैं कि एंडोमेट्रियोसिस में शुरुआती इलाज न मिलने से महिलाओं की फर्टिलिटी प्रभावित हो सकती है. वहीं, समय पर इलाज से इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. वो कहती हैं कि महिलाओं को शुरुआती लक्षणों के दौरान ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. 

भारत में क्या है PCOS के आंकड़े 
– PCOS से 10 में से 3 महिलाएं प्रभावित हैं, लेकिन 70% को इसका पता ही नहीं चलता। (ICMR रिपोर्ट)  
– एंडोमेट्रियोसिस का सही इलाज लेने में औसतन 7 साल लग जाते हैं। (The Lancet, 2023)  
– भारत में केवल 10% महिलाएं ही रेगुलर गाइनेकोलॉजिस्ट से चेकअप कराती हैं। (National Health Survey, 2022)

कैसे हो सकता है बचाव 
महिलाएं अपने मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं को गंभीरता से लें. 
प्रोसेस्ड फूड कम करें और हेल्दी फैट्स व प्रोटीन लें. 
PCOS में कार्डियो और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग मददगार साबित होती है. 
हर 6 महीने में गाइनेकोलॉजिस्ट से चेकअप करवाना जरूरी है. 
मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और हार्मोन बैलेंस करने में मदद करता है. 
महिलाओं के मासिक धर्म चक्र के अनुसार डाइट और एक्सरसाइज को एडजस्ट करने से लक्षणों में सुधार हो सकता है. 

कर‍ियर पर भी डालता है असर 
बता दें कि PCOS और एंडोमेट्रियोसिस केवल हेल्थ इशू नहीं बल्कि यह महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य, करियर और जीवनशैली को भी प्रभावित करता है.इस ‘साइलेंट हेल्थ क्राइसिस’ को अर्ली स्टेज पर ही समझकर अगर समय रहते सही इलाज हो सके तो इससे निजात मिल सकती है. 

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