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Mumbai: सात साल पहले लापता हुई कस्तूरी पाटिल का जीवन ‘बादामी’ शब्द से बदल गया. रायगढ़ की गलियों में भटक रही कस्तूरी को SEAL संगठन ने बचाया. जब उसने ‘बादामी’ कहा, तो पुलिस ने बेटी से मिलाया, यह किसी चमत्कार से क…और पढ़ें

दर-दर भटकीं, कूड़े से उठाकर खाना खाया, 1 शब्द सुनते ही 7 साल बाद लौटी याददाश्त

7 साल बाद बेटी से मिली मां.

मुंबई की व्यस्त गलियों में कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि सिर्फ एक शब्द किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है. सात साल पहले लापता हुई एक महिला बेघर होकर सड़कों पर भटक रही थी, अपनी पहचान तक भूल चुकी थी. लेकिन एक दिन अचानक ‘बादामी’ शब्द सुनकर उसकी किस्मत ने करवट ली और उसे उसकी बेटी से मिलवा दिया. यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि एक सच्ची घटना है, जिसने हर किसी का दिल छू लिया.

रायगढ़ की गलियों से आश्रय तक का सफर
रायगढ़ जिले के पाली क्षेत्र में भटक रही कस्तूरी पाटिल (50) की हालत बेहद दयनीय थी. वह अपनी पहचान तक भूल चुकी थी और भीख मांगकर या कचरे से बचा-खुचा खाना खाकर जिंदा थी. कुछ स्थानीय नागरिकों ने जब उनकी यह हालत देखी, तो उन्होंने ‘सोशल एंड इवेंजेलिकल एसोसिएशन फॉर लव’ (SEAL) नामक संगठन को इसकी जानकारी दी. SEAL पनवेल के वांगनी गांव में स्थित एक सामाजिक संगठन है, जो बेघर लोगों की मदद करता है. कस्तूरी को वहां लाया गया और धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार होने लगा.

एक शब्द जो बना जीवन का मोड़
कस्तूरी अपनी याददाश्त खो चुकी थी, लेकिन कुछ महीने बाद उसने अचानक ‘बादामी’ शब्द का उच्चारण किया. SEAL के सदस्य बिजू सैमुअल और उनकी टीम ने तुरंत इस पर ध्यान दिया. उन्हें मालूम था कि बादामी कर्नाटक के बागलकोट जिले का एक महत्वपूर्ण शहर है. इस जानकारी के आधार पर उन्होंने तुरंत बादामी पुलिस स्टेशन से संपर्क किया और कस्तूरी की तस्वीरें भेजीं.

बेटी के इंतजार का हुआ अंत
बादामी पुलिस से खबर आई कि कस्तूरी की बेटी देवम्मा भिंगारी ने सात साल पहले अपनी मां की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी. जब यह सूचना देवम्मा को मिली, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह तुरंत अपनी मां से मिलने के लिए निकल पड़ी. यह क्षण किसी चमत्कार से कम नहीं था.

गुमशुदगी की दर्दनाक कहानी
कस्तूरी की जिंदगी में दुखों का सिलसिला तब शुरू हुआ जब उनके पति ने दूसरी शादी कर ली. इस सदमे से टूटकर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और अपनी बहन के पास रहने लगीं. लेकिन अवसाद के कारण वह वहां से भी निकल पड़ीं और महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में भटकने लगीं. किसी को भी उनकी सुध नहीं थी, न ही वह खुद अपने अतीत को याद रख सकीं.

मां-बेटी के मिलन की खुशी
कस्तूरी की बेटी की सास, इरम्मा भिंगारी ने कहा, “मेरी बहू अपनी मां के बारे में बहुत चिंतित थी. हम बहुत खुश हैं कि आखिरकार वह मिल गईं.” जब कस्तूरी ने अपनी बेटी को देखा तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. वर्षों बाद वह अपने परिवार से मिलकर बेहद भावुक हो गईं.

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