उत्तर प्रदेश के खीरी जिले के नरगड़ा गांव में हर साल होली के दिन एक अनोखी बारात निकलती है, जहां दूल्हा तो होता है, लेकिन दुल्हन नहीं। इस बार भी गांव के विश्वम्भर दयाल मिश्रा 42वीं बार दूल्हा बने, लेकिन हमेशा की तरह बारात बिना दुल्हन के ही वापस लौट आई।
ट्रैक्टर पर सवार दूल्हा, रंगों से सराबोर बारात
सोमवार को पूरे गांव ने रंग, गुलाल और ढोल-नगाड़ों के साथ बारात निकाली। दूल्हे विश्वम्भर दयाल मिश्रा को ट्रैक्टर पर बिठाया गया, और पूरा गांव नाचते-गाते बारात के साथ चला। दुल्हन के घर पहुंचने पर सभी रस्में निभाई गईं, द्वारपूजन हुआ, मंगलगीत गाए गए, बारातियों के पैर पखारे गए।
लेकिन, परंपरा के अनुसार फेरे और विदाई के बाद भी दुल्हन नहीं मिली, और 42वीं बार यह अनोखी शादी अधूरी रह गई। इससे पहले विश्वम्भर के बड़े भाई श्यामबिहारी भी 35 बार बिना दुल्हन की बारात निकाल चुके हैं।
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सैकड़ों साल पुरानी परंपरा, हर साल निभाई जाती है शादी की रस्में
गांव के लोग बताते हैं कि यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। हर साल होली के दिन पूरा गांव बारात निकालता है, शादी की पूरी रस्में निभाई जाती हैं, लेकिन अंत में दूल्हा बिना दुल्हन के लौटता है।
विश्वम्भर की असली पत्नी मायके भेजी जाती है
अनोखी बात यह है कि विश्वम्भर दयाल मिश्रा की असली पत्नी मोहिनी को हर साल होली से पहले मायके भेज दिया जाता है। जब बारात बिना दुल्हन लौटती है, तो कुछ दिनों बाद मोहिनी को ससुराल वापस भेज दिया जाता है।
पहले भाई निभाते थे यह परंपरा
विश्वम्भर से पहले उनके बड़े भाई श्यामबिहारी 35 वर्षों तक इसी परंपरा को निभाते रहे। तब वह भैंसे पर सवार होकर बारात लेकर निकलते थे। इस अनोखी शादी को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं।
लोक संस्कृति की जीवंत मिसाल
भले ही आज की शादियों में कई आधुनिक बदलाव आ चुके हों, लेकिन नरगड़ा गांव की यह परंपरा आज भी लोक संस्कृति और रीति-रिवाजों की यादें समेटे हुए है। बारात में आज भी गारी, सोहर, मंगलगीत और पारंपरिक शादी के गीत गाए जाते हैं, जो इसे और भी खास बना देते हैं।
नरगड़ा गांव की यह अनोखी शादी सिर्फ एक मज़ाक या स्वांग नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही परंपरा और सामाजिक एकता की मिसाल है।