80 साल के इस नेता को चाहिए 350 सुरक्षा गार्ड, बताया अपनी जान को खतरा

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे.

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका मिला है. कोर्ट ने महिंदा राजपक्षे की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने अपनी सुरक्षा बहाली की मांग की थी. राजपक्षे ने सरकार की ओर से उनकी सुरक्षा में कटौती किए जाने के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी.

80 वर्षीय राजपक्षे की यह कानूनी लड़ाई ऐसे समय में सामने आई जब सरकार उन्हें उनके आधिकारिक आवास से भी बेदखल करने की प्रक्रिया में लगी हुई है. राजपक्षे ने इस साल जनवरी में एक मौलिक अधिकार याचिका दाखिल कर अदालत से हस्तक्षेप की मांग की थी. उन्होंने कहा कि सरकार ने दिसंबर 2024 में उनकी सुरक्षा में भारी कटौती कर दी, जिससे उनके जीवन को खतरा बढ़ गया है.

याचिका में क्या कहा था महिंदा ने?

महिंदा राजपक्षे ने अपनी याचिका में कहा था कि पहले उनकी सुरक्षा में 350 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात थे, लेकिन अब यह संख्या घटाकर मात्र 60 कर दी गई है. राजपक्षे का दावा था कि उनकी जान को गंभीर खतरा है क्योंकि उन्होंने श्रीलंका में तीन दशक से चल रहे गृहयुद्ध को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई थी. इस संघर्ष में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) संगठन श्रीलंका से अलग तमिल राज्य की मांग कर रहा था.

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सरकार और विपक्ष आमने-सामने

महिंदा राजपक्षे ने अपनी याचिका में प्रधानमंत्री हरिणी अमरासूर्या, कैबिनेट और रक्षा मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया था. सरकार का कहना है कि वह सरकारी खर्चों को कम करने के लिए पूर्व राष्ट्रपतियों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती कर रही है. हालांकि, विपक्ष ने सरकार की इस कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताया है. उनका कहना है कि पूर्व राष्ट्रपतियों को कुछ विशेषाधिकार मिलते हैं और उन्हें इस तरह अचानक सुरक्षा और आवास से वंचित करना गलत है.

राजपक्षे की भूमिका और मौजूदा संकट

महिंदा राजपक्षे 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे. उनके कार्यकाल के दौरान 2009 में श्रीलंकाई सेना ने तमिल टाइगर्स के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरन की हत्या कर विद्रोह को कुचल दिया था. पूर्व राष्ट्रपति अभी भी अपने सरकारी आवास में रह रहे हैं, जबकि सरकार उन्हें वहां से निकालने की प्रक्रिया में लगी हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले को सुनवाई के लायक नहीं माना और राजपक्षे की याचिका को खारिज कर दिया.

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