
कहते हैं भगीरथ ने अपने तप से स्वर्ग से मां गंगा को धरती पर उतार दिया था। तब से ही असंभव से दिखने वाले काम को कर दिखाने के जज्बे को भगीरथ प्रयास कहा जाता है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भी कहीं न कहीं आडवाणी के भगीरथ प्रयास का ही नतीजा है। मंदिर भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बना लेकिन उसके लिए आडवाणी ने जो संघर्ष किया, जिस तरह आंदोलन चलाया, उसे कभी नहीं भूला जा सकता। यहां तक कि उन्हें मुकदमे का भी सामना करना पड़ा। कुछ काम इतिहास में ऐसे होते हैं, जिनका पर्याय ही कोई चेहरा बन जाता है। उस ऐतिहासिक घटना का जिक्रभर कीजिए, आंखों के सामने सबसे पहले उस हस्ती का नाम या चेहरा सामने आ जाता है। नजीर के तौर पर, मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात आएगी तो खुद-ब-खुद बीपी सिंह का नाम कौंधेगा। दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश के जन्म का जब भी जिक्र होगा, आंखों के सामने इंदिरा गांधी की सूरत और उनका नाम ही आएगा। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने का जब भी जिक्र होगा, नरेंद्र मोदी और अमित शाह का नाम जेहन में आएगा। इसी तरह जब-जब राम मंदिर और उसके लिए आंदोलन का जिक्र होगा तो लोगों को खुद-ब-खुद आडवाणी का नाम ही याद आएगा।

आडवाणी को राम मंदिर उद्घाटन समारोह का न्यौता देते विश्व हिंदू परिषद के नेता
लाल कृष्ण आडवाणी न सिर्फ राम मंदिर आंदोलन के सारथी थे बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के दमदार उदय के भी शिल्पी थे। 1990 में सोमनाथ से निकली उनकी रथयात्रा ने ही देशभर में मंदिर के पक्ष में एक लहर पैदा की। जब वह ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएंगे’ का उद्घोष करते थे तो रामभक्तों में एक अलग ही उत्साह का संचार होता था। उनकी रथ यात्रा के दौरान जब ‘एक धक्का और दो…’ का भी भड़काऊ नारा लगता था तो वह लोगों से अपील करते थे कि हिंदू तोड़ने में नहीं बल्कि जोड़ने में यकीन करते हैं। इस नारे की जगह ‘सौगंध राम की…’ नारा लगाया जाए। सोमनाथ से शुरू हुई रथयात्रा 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पहुंचनी थी। लेकिन यूपी में प्रवेश से पहले ही उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। तब बिहार में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे। 30 अक्टूबर 1990 को जिस दिन रथ यात्रा को अयोध्या पहुंचना था उसी दिन यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने क आदेश दिया था जिसमें कई कारसेवक मारे गए। घटना के 23 साल बाद सपा के संस्थापक ने जुलाई 2013 में कहा था कि उन्हें कारसेवकों पर गोली चलवाने का अफसोस है लेकिन उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था।

राम मंदिर आंदोलन के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी के कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे थे मुरली मनोहर जोशी
लाल कृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन का चेहरा थे लेकिन मुरली मनोहर जोशी भी उसके पोस्टर बॉय में से एक थे। जोशी बीजेपी के चोटी के नेताओं में शुमार थे। अटल-आडवाणी-जोशी की तिकड़ी मशहूर थी। जोशी राम मंदिर आंदोलन में आडवाणी के साथ कंधा से कंधा मिलाकर शामिल थे। जब बाबरी मस्जिद ढहाया गया तब जोशी भी आडवाणी के साथ मौजूद थे। उन्होंने भी मुकदमे का सामना किया। बाबरी के गिरने के बाद जोशी को गले लगाती उमा भारती की एक बहुचर्चित तस्वीर ने तब पूरे देश का ध्यान खींचा था।

मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती की वो चर्चित तस्वीर
आडवाणी आज 96 साल के हैं और मुरली मनोहर जोशी 90 साल के। बीजेपी के दोनों दिग्गज नेता और ‘मार्गदर्शक’ उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। उम्र और सेहत का तकाजा है कि जिस आंदोलन से उनकी घर-घर में पहचान बनी, जिस उद्देश्य से उन्होंने आंदोलन चलाया आज जब वह उद्देश्य पूरा हो रहा है तो उस ऐतिहासिक पल को खुद की आंखों से देखने के लिए वे वहां मौजूद नहीं रहेंगे। कम से कम चंपत राय का बयान तो यही इशारा करता है।