कितना स्वैच्छिक?
साल 2021 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन के बाद आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की अनुमति मिली। चुनाव आयोग ने तब जनता से उनके आधार नंबर मांगते हुए कहा था कि यह स्वैच्छिक है यानी जिसे दोनों डॉक्युमेंट लिंक करने हैं वह करे और जो नहीं चाहता, वह न करे।
कानूनी पहलू
आयोग के पास 66.23 करोड़ आधार नंबर आ चुके हैं। हालांकि इन्हें अभी तक वोटर आईडी से लिंक नहीं किया गया है। वजह है 2023 में हुआ अदालती केस। सुप्रीम कोर्ट में जब यह मामला पहुंचा, तो यही आरोप लगाया गया था कि आयोग के अनुसार प्रक्रिया स्वैच्छिक है, लेकिन जानकारी जुटाने के लिए जो फॉर्म लागू किया गया, उससे यह बात पता नहीं चलती। यही सवाल अब भी कायम रहेगा।
प्राइवेसी की चिंता
दूसरी बड़ी चिंता है लोगों की प्राइवेसी को लेकर। आज प्राइवेट डेटा लीक सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। जब आधार और वोटर आईडी का डेटाबेस मिल जाएगा, तो इसे सिक्योर करने की चुनौती भी ज्यादा बड़ी होगी। ऐसे सॉफ्टवेयर और टूल की जरूरत पड़ेगी, जिससे लोगों के मन में किसी तरह की आशंका न रहे।
राजनीतिक एंगल
इस मामले के राजनीतिक पहलू पर नजर डालना भी जरूरी है। हाल में तृणमूल कांग्रेस ने डुप्लिकेट वोटर आईडी का मुद्दा उठाया। इससे पहले भी तमाम प्रमुख दल अपनी चिंता जता चुके हैं। जाहिर तौर पर चुनाव आयोग का मकसद यही है कि डुप्लिकेसी को खत्म किया जाए और हर एक वोट वैध हो। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने विदाई भाषण में बायोमीट्रिक पहचान की खासियत पर बात की थी। लेकिन, मसला है कि अभी पूरी प्रक्रिया स्वैच्छिक है। अगर यह आगे भी स्वैच्छिक रहती है तो आयोग को पूरा डेटा कैसे मिलेगा और जब पूरा डेटा ही नहीं होगा तो डुप्लिकेसी को कैसे खत्म किया जाएगा?
अहम बैठक
सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि आधार को किसी भी सरकारी प्रक्रिया से जोड़ने के लिए साबित करना जरूरी होगा कि यह वाकई जरूरी है और इससे कोई नुकसान नहीं होगा। याद रखना होगा कि यह प्रक्रिया केवल प्रशासनिक नहीं, चुनावी व्यवस्था पर जनता के भरोसे से जुड़ी हुई है।