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Justice Yashwant Varma Cash Recovery Case: दिल्‍ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले से कैश बरामदगी मामले के बाद जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है.

'कॉलेजियम सिस्‍टम बेकार', पूर्व सॉलिसिटर जनरल ने NJAC की दिलाई याद

हरीश साल्‍वे ने कॉलेजियम सिस्‍टम को बेकार बताया है.

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज से जुड़े कथित ‘घर पर नकदी’ मामले में भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने शुक्रवार को अधिक पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए न्यायिक नियुक्ति की प्रणाली में व्यापक बदलाव का आह्वान किया. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका के खिलाफ लगाए गए लांछन और अपुष्ट आरोप जनता की आस्था को हिला देते हैं और आखिरकार लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े प्रकरण को चेतावनी बताते हुए उन्होंने कहा कि आज हमारे पास न्यायिक नियुक्ति की जो प्रणाली है, वह निष्क्रिय है.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पिछले सप्ताह जब फायर डिपार्टमेंट की एक गाड़ी जस्टिस वर्मा के आवास पर आग बुझाने गई थी, तो वहां भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी. उन्होंने ताजा विवाद को बदलाव की याद दिलाते हुए कहा, ‘हमें चर्चा फिर से शुरू करने की जरूरत है…यह अस्तित्व का संकट है. आपको इस संस्था को बचाना होगा. हरीश साल्वे ने विधानमंडल (विशेषकर संसद सदस्यों से) न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक परिष्कृत और अधिक पारदर्शी प्रणाली के लिए सामूहिक रूप से सुझाव देने का आह्वान किया.

यह 70-80 का दशक नहीं
हरीश साल्‍वे ने कहा, ‘मैं देखता हूं कि जिन 500 लोगों को हमने वोट देकर सत्ता में भेजा है, उन्हें अपने राजनीतिक मतभेदों को एक तरफ रखना होगा. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें उन्हें एक साथ बैठकर विचार-विमर्श करना होगा. संसद में भेजे गए 500 लोगों के सामूहिक विवेक से एक ढांचा तैयार करना होगा.’ उन्होंने न्यायपालिका के खिलाफ लगाए गए आरोपों की भी आलोचना की और कहा कि इससे लोगों की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंच रही है. उन्होंने अपुष्ट रिपोर्टिंग के खिलाफ सावधानी बरतने का संकेत देते हुए कहा, ‘हम बहुत ही अशांत और अलग समय में रह रहे हैं. आज यह 1960, 70 और 80 का दशक नहीं है, जब खबरें सामने आने में कई हफ्ते और कई हफ्ते लग जाते थे. आज यह सोशल मीडिया का युग है. कोई घटना होती है. इसे वीडियो में कैद कर लिया जाता है और 15 मिनट में जारी कर दिया जाता है. दुनिया जानती है कि 15 मिनट पहले आपके घर में क्या हुआ था.’

न्‍यायपालिका सम्‍मानित संस्‍था
हरीश साल्‍वे ने कहा, ‘मुझे लगता है कि लोकतंत्र में न्यायपालिका एक बहुत ही सम्मानित संस्था है. क्या हम बिना कार्यशील न्यायपालिका के रह सकते हैं? हम नहीं रह सकते. और अगर हम बिना कार्यशील न्यायपालिका के नहीं रह सकते, तो हमें इसे मजबूत करना होगा.’ साल 1993 में बनाई गई वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित सीनियर जजों का एक समूह शामिल है, जो उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण पर निर्णय लेता है. इन चिंताओं को दूर करने के प्रयास में सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का प्रस्ताव रखा, जिसका उद्देश्य कॉलेजियम प्रणाली को गैर-न्यायिक सदस्यों वाले निकाय से बदलना था, लेकिन साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.

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