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Karnataka News: कर्नाटक सरकार ने राज्य में शैंपू, साबुन पर रोक लगा दी है. यह रोक लगानी की वजह प्रदूषण को कम करना है. कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का क्या है प्लान आप भी जान लें….

यहां न लगा पाएंगे साबुन  न ही... इस कांग्रेस सरकार ने क्यों लगाया ये बैन

कर्नाटक में तलाबों और नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार ने शैंपू, साबुन के इस्तेमाल पर रोक लगाई

हाइलाइट्स

  • राज्य सरकार के आदेश में डिटर्जेंट पाउडर के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई है
  • कर्नाटक सरकार की यह योजना नदियों और तालाबों में हो रहे प्रदूषण को रोकने की है
  • तीर्थस्थलों पर उत्पादों की बिक्री पर 500 मीटर की दूरी के भीतर प्रतिबंध है.

बेंगलुरु. कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लोगों को शरीर पर साबुन रगड़ने और बालों में शैंपू लगाने पर रोक लगा दी है. हालांकि राज्य सरकार के आदेश में डिटर्जेंट पाउडर के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई है ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके. असल में कर्नाटक सरकार की यह योजना नदियों और तालाबों में हो रहे प्रदूषण को रोकने की है. साबुन, डिटर्जेंट और शैंपू से होने वाले प्रदूषण से बचाने के लिए विशेष रूप से तीर्थस्थलों के आसपास इन उत्पादों की बिक्री पर 500 मीटर की दूरी के भीतर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है.

कर्नाटक के पर्यावरण मंत्री ईश्वर खंड्रे ने अधिकारियों को नदियों, तालाबों और मंदिरों के कुंडों के पास साबुन और शैंपू की बिक्री को नियंत्रित करने और भक्तों को अपने पुराने कपड़े इन जलाशयों में छोड़ने से रोकने के निर्देश दिए हैं. खंड्रे ने कहा कि तीर्थस्थलों पर जाने वाले भक्तों की उपयोग और फेंकने की संस्कृति जलाशयों को नुकसान पहुंचा रही है. मंत्री ने पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि अधिकांश भक्त नदियों, झीलों या मंदिरों के कुंडों के स्नान घाटों पर इस्तेमाल किए गए साबुन, डिटर्जेंट और शैंपू के पैकेट छोड़ देते हैं. अंततः ये नदियों में मिल जाते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है.

आखिर क्यों लिया ये फैसला?
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टीओआई को बताया कि इन अनियंत्रित गतिविधियों के कारण तीर्थस्थलों पर नदियों या झीलों में फॉस्फेट और अन्य रासायनों की मात्रा बढ़ गई है, जिससे पानी में झाग बढ़ रहा है. कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समझाया कि यदि भक्त अपने व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों को वापस ले जाते हैं, तो जलाशयों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

आदेश देने की पीछे की वजह?
केएसपीसीबी और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) दोनों नियमित रूप से नदी और झील के पानी की गुणवत्ता की जांच कर रहे हैं और सरकार को सुधारात्मक कार्रवाई के बारे में अपडेट कर रहे हैं. यह ध्यान में रखते हुए कि उसी पानी का उपयोग पशुधन और जलीय जानवरों द्वारा किया जाता है. उन्होंने कहा कि तीर्थस्थलों पर नदियों या झीलों के पास या स्नान घाटों के पास कई दुकानें उग आई हैं, जो 5 या 10 रुपये के छोटे साबुन और शैंपू के पैकेट बेचती हैं. ऐसे उत्पादों की आसान उपलब्धता नागरिकों को अपने व्यक्तिगत स्वच्छता उत्पादों को ले जाने और वापस ले जाने के बजाय उपयोग और फेंकने की संस्कृति अपनाने के लिए प्रेरित करती है. इसलिए, मैंने अधिकारियों को जलाशयों के 500 मीटर के दायरे में इन वस्तुओं की बिक्री को नियंत्रित करने के लिए कहा है.

कपड़ों को लेकर दिया क्या आदेश?
मंत्री ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए हैं कि कोई भी भक्त नदियों में स्नान करने के बाद अपने पुराने कपड़े न छोड़े. उन्होंने कहा कि सालों से इनमें से कुछ नदियों में पुराने कपड़ों के बड़े ढेर रह गए हैं. इसलिए, मैंने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए भी निर्देश दिए हैं कि सभी भक्त नदियों और झीलों में स्नान करने के बाद अपने पुराने कपड़े वापस ले जाएं.

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