
R-2 बंगले की कहानी.
उत्तराखंड सरकार में प्रेमचंद अग्रवाल ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया है. इसके साथ ही यहां यमुना कॉलोनी में ‘आर-2’ बंगला फिर से सुर्खियों में आ गया है. इसकी वजह है इससे जुड़ा हुआ मिथक. ऐसा कहा जाता है कि यहां रहने वाला मंत्री कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है. ये महज संयोग है या हकीकत, लेकिन ‘आर-2’ बंगला चर्चा में जरूर है.
बता दें कि ‘पहाड़-मैदान’ वाले विवादित बयान को लेकर प्रेमचंद अग्रवाल ने रविवार को पद से इस्तीफा दिया था. अगले ही दिन सरकारी बंगला ‘आर-2’ भी खाली कर दिया. ये बंगला उन्हें साल 2022 में आवंटित हुआ था. जब उत्तराखंड नहीं बना था और उत्तर प्रदेश का हिस्सा था तबसिंचाई विभाग के अधिकारियों के लिए इसका निर्माण हुआ था.
आर-2 बंगले का इतिहास
उत्तराखंड बनने के बाद मंत्रियों के सरकारी आवास के रूप में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ. साल2002 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी सरकार में ‘आर-2’ बंगला शूरवीर सिंह सजवाण के पास था. वो सिंचाई मंत्री थे. फिर मंत्रिमंडल को छोटा रखने के लिए 91वें संविधान संशोधन आया. इस वजह से नारायण दत्त तिवारी को 2004 में मंत्रिमंडल से 5 सदस्यों को हटाना पड़ा, जिसमें सजवाण भी शामिल थे.
बंगले से जुड़ा मिथक
फिर 2007 में हरक सिंह रावत इस बंगले में रहे. वो नेता प्रतिपक्ष थे. उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद 2012 में मंत्री बनने के बाद वो इसी बंगले में रहे लेकिन 2016 में हरीश रावत सरकार से विधायकों की बगावत के चलते पद और विधायकी के साथ ही बंगले को भी अलविदा कहना पड़ा.
इसी तरह मुख्यमंत्री आवास को लेकर भी यही मिथक लंबे समय तक चलता रहा. कहा जाता रहा कि यहां रहने वाला सीएम कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता. साल 2012 में विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने तो यहां रहने पहुंचे. मगर, 2014 में पद छोड़ना पड़ा. शायद इसी वजह से बहुगुणा की जगह सीएम बने हरीश रावत ने मुख्यमंत्री आवास में रहने से परहेज किया.
धामी के लिए रहा ‘शुभ’
साल 2017 में विधानसभा चुनाव के बाद सीएम बने त्रिवेंद्र रावत ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की. वो मुख्यमंत्री आवास में रहने पहुंचे लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा. इन सबके बीचमौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए मुख्यमंत्री आवास बहुत ‘शुभ’ साबित हुआ. यहां रहते हुए वो दोबारा मुख्यमंत्री बने.