लेखक: अवधेश कुमार
प्रयागराज महाकुंभ संपूर्ण विश्व के लिए अगर आश्चर्य का विषय बना है तो यह स्वाभाविक है। इतिहास के किसी भी दौर में विश्व समुदाय नदी या नदियों के संगम में डुबकी लगाने के लिए इस तरह से जन समूह उमड़ने के दृश्य का साक्षी नहीं बना। यह विचार का विषय है कि वह कौन सा भाव है जिससे संपूर्ण भारत और विश्व भर में फैले हुए सनातनी-हिंदू प्रयागराज पहुंचने के लिए लगातार निकल रहे हैं और उनका कारवां समाप्त ही नहीं हो रहा। कोई यह सोचे कि इतना बड़ा जनसमूह निकलकर यूं ही आ गया, डुबकी लगाकर अपने घर लौट गया और इसका कोई परिणाम तात्कालिक और दूरगामी दृष्टि से नहीं होगा तो यह सही सोच नहीं होगी। सूक्ष्म रूप से ऐसी बड़ी घटनाएं होती हैं तो उनके परिणाम लंबे समय तक आते रहते हैं। भले ही तुरंत उन्हें समझना संभव नहीं होता।

पश्चिमी सोच की सीमा

दुर्भाग्य से हमने पुनर्जागरण, परिवर्तन, क्रांति, धर्म, कर्मकांड, जीवन-मृत्यु, सुख आदि के बारे में पिछले करीब डेढ़ सौ वर्षो में पश्चिमी नजरिये से अध्ययन किया। उदाहरण के लिए, पुनर्जागरण को हम यूरोप के रेनेसां वाले दौर से देखते हैं। पश्चिम ने हमेशा राजनीतिक क्रांति को परिवर्तन का मूल माना। यह मत सोचिए कि फ्रांसीसी क्रांति में रोटी-रोटी चिल्लाते राजमहल की ओर बढ़ती भीड़ या चीन में माओ के नेतृत्व में लॉन्ग मार्च ही क्रांति थी। महाकुंभ में उतरा जनसमूह भारतीय दृष्टि की क्रांति ही है।

क्रांति की भारतीय सोच

भारत की सभ्यता में राजनीतिक क्रांति की अवधारणा थी ही नहीं। भारत ने धार्मिक-आध्यात्मिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात की। यहां क्रांति का अर्थ ऐसे परिवर्तन से है जो व्यक्ति से निकलते हुए समूह, समाज, राष्ट्र और विश्व तक पहुंचता है। इसके लिए परिवर्तन के आधुनिक नारे, युद्ध आदि की आवश्यकता नहीं होती। अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद ,स्वामी दयानंद आदि ने हमेशा भारत की आध्यात्मिक क्रांति की सोच को सामने रखा।

गांधी की मिसाल

15 अगस्त, 1947 के अपने संदेश में अरविंद ने राजनीतिक क्रांतिकारी जीवन का परित्याग कर अध्यात्म का रास्ता अपनाया और सैकड़ों क्रांतिकारियों ने उसका वरण किया। गांधीजी भी कहते थे कि भारत में ही दुनिया को रास्ता दिखाने की क्षमता है और धर्म ऐसा क्षेत्र है जिसमें वह सबसे बड़ा हो सकता है। उसके पीछे यही दृष्टि थी। गांधीजी ने असहयोग आंदोलन और उसके बाद कई संघर्षों में आश्रम जीवन पद्धति और उसके अनुसार सत्याग्रहियों के निर्माण का रास्ता अपनाया।

परिवर्तन के वाहक

भारत में जब-जब समस्या हुई कोई शंकराचार्य, कोई रामानुजाचार्य, कोई महात्मा बुद्ध परिवर्तन के वाहक बने। उन परिवर्तनों का गहरा असर आज तक है और यही भारत को बचाए भी रहा। इसी भाव को भारत में फिर से पैदा करने की आवश्यकता थी। भारत इस रूप में बदल रहा है और विश्व में उसके उत्थान का समय है। अंग्रेजों से स्वतंत्रता संघर्ष के समानांतर अनेक संगठन संस्थाएं इसी दृष्टि से खड़ी हुईं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार स्वयं बंगाल में क्रांतिकारी थे, किंतु वापस आकर उन्होंने संघ की स्थापना की। उसके पीछे भारत में इसी अमूर्त क्रांति और परिवर्तन का लक्ष्य पाने और उसे बनाए रखने का भाव था।

भारतीय जीवन का मूल

वास्तव में, धर्म भारतीय जीवन का मूल रहा है। कहा गया है कि जितनी संख्या में लोग धर्मोन्मुख होंगे, उनसे निकलने वाली दिव्य ऊर्जाएं संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याण का वाहक बनती जाएंगी। अंग्रेजों ने वाइट मैंस बर्डन थियरी अपने साम्राज्य विस्तार के लिए दी और हमने कृण्वंतो विश्व आर्यम् संपूर्ण मानवता को ज्ञान देने के लिए। हमारे लिए यही पुनर्जागरण और वैश्विक क्रांति है। उसके लिए खगोलीय दृष्टि भी थी। यानी किस तिथि, किस काल में किस तरह की दिव्य ऊर्जाएं और शक्तियां कौन सा कर्मकांड करने पर हमें सकारात्मक परिणाम देंगी, इसकी सूक्ष्मतम गणना थी। इसी गणना के अनुसार कुंभ सहित हमारी बाकी धार्मिक परंपराएं निर्धारित रहीं।

खास कालखंड की विकृतियां

एक कालखंड में पैदा विकृतियां, विसंगतियां, विद्रूपताएं आदि ऐसे ही महायोजना मे विलीन होकर संपूर्ण भारत का एकाकार स्वरूप प्रकट करती हैं। अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन को भी ज्यादातर नेता, राजनीतिक दल, बुद्धिजीवी समझ नहीं सके। राजनीतिक दल और बुद्धिजीवी BJP या मोदी-योगी सरकारों की जितनी आलोचना करें लेकिन भारतीय कसौटी पर यह शासन इतिहास के परिवर्तन के उस अध्याय में सदा याद किया जाएगा, जिसने महाकुंभ के प्रचार से लोगों में वहां तक पहुंचने का भाव पैदा किया।

राजसत्ता का कर्तव्य

महाकुंभ के प्रचार का राजनीतिक विरोध करने वाले जानते ही नहीं कि भारतीय राजसत्ता का यही परम कर्तव्य है। महाकुंभ का पूरा प्रचार कर लोगों के अंदर वहां जाकर स्नान करने का भाव पैदा करने और उसके अनुरूप यथासंभव अनुकूल ढांचा देने की भूमिका ही सत्ता की होनी चाहिए थी। हम मौजूदा शासन के किसी पहलू की भले आलोचना करें, पर भारतीय दृष्टि से इस धार्मिक-आध्यात्मिक-सांस्कृतिक क्रांति का वाहक मोदी और योगी सरकार बनी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विचारक हैं)

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