कोटा: राजस्थान की कोचिंग सिटी यानी कोटा में इस वर्ष बाहर से आने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में भारी गिरावट दर्ज हुई है। यहां की कोचिंग इंडस्ट्री को ‘कोटा फैक्ट्री’ कहा जाता था और इस फैक्ट्री में इन दिनों मंदी का दौर चल रहा है। हालांकि कोचिंग इंडस्ट्री के बाद अब कोटा शहर में रोजगारा को लेकर एक और संकट गहराता जा रहा है। मंडियों से कृषक कल्याण टैक्स हटाने की मांग को लेकर व्यापारिक वर्ग सरकार के खिलाफ हड़ताल पर है। 23 फरवरी से जारी इस हड़ताल का असर रोजगार पर गहराने लगा है, जिससे मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है। कोटा में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि बिहारी मजदूर पलायन करने लगे हैं।

7000 मजदूर काम करते हैं, अब रोजी-रोटी पर संकट मंडराया

आढ़त व्यापारी कोरोना काल में लागू किए गए कृषक कल्याण टैक्स को हटाने की मांग को लेकर मंडी में व्यापार बंद कर हड़ताल पर हैं। इस कारण मंडी में जिंसों की खरीद-फरोख्त पूरी तरह ठप हो गई है, जिससे पल्लेदार और हम्माल मजदूरों को काम नहीं मिल रहा। कोटा भामाशाह मंडी में करीब 7,000 मजदूर काम करते हैं, जिनकी रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है। मजदूरों को उम्मीद है कि व्यापारियों की हड़ताल जल्द खत्म हो ताकि उन्हें फिर से काम मिल सके, लेकिन फिलहाल उन्हें कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है।

रोज कमाते हैं, रोज खाते हैं

पल्लेदार मजदूर संगठन के अध्यक्ष मुकेश वैष्णव ने बताया कि मंडी में 5,000 से अधिक पल्लेदार मजदूर और 2,000 से ज्यादा महिला श्रमिक काम करते हैं। ये मजदूर रोज कमाते और अपने घर का खर्च चलाते हैं, लेकिन 24 फरवरी से उनके पास कोई काम नहीं है, जिससे घर चलाना मुश्किल हो गया है। मजदूरों की मांग है कि व्यापारी और सरकार जल्द से जल्द किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, क्योंकि इस संघर्ष का सबसे ज्यादा नुकसान मजदूरों को हो रहा है।

मजदूरी न मिलने के कारण कई मजदूर वापस अपने घर लौट रहे हैं। हर दिन करीब 10 मजदूर भामाशाह मंडी से बिहार रवाना हो रहे हैं, जिससे पलायन की स्थिति बन रही है।

सुनील मालामार, बिहार निवासी मजदूर

काम नहीं तो क्रिकेट खेल रहे मजदूर

मंडी में काम ठप होने के कारण मजदूर अपना समय बिताने के लिए क्रिकेट खेल रहे हैं, जबकि कुछ मजदूर खाली बैठकर सुस्ता रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि हड़ताल खत्म हो ताकि उन्हें फिर से काम मिल सके, क्योंकि मजदूरी के अभाव में घर चलाना उनके लिए मुश्किल हो गया है।

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