मध्यपूर्व में हिंसा जंगल की आग की तरह हो चुकी, जो फैलती ही जा रही है. लगभग डेढ़ दशक पहले यहां अरब स्प्रिंग शुरू हुआ था, जिसने सीरिया से बढ़ते हुए पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया. अब इस देश में एक बार फिर कत्लेआम मचा हुआ है. हाल में नई सरकार और सत्ता से बेदखल हुए राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थकों के बीच भारी संघर्ष हुआ. सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, इसमें दो दिनों के भीतर लगभग हजार मौतें हो चुकीं. अलावी मुस्लिम समुदाय को खासतौर पर निशाना बनाया जा रहा है.
सीरिया में अभी क्या हो रहा है
पिछले साल के आखिर में सीरिया में लगभग आधी सदी से चले आ रहे परिवारवाद का खात्मा बशर अल-असद के तख्तापलट के बाद हुआ. राष्ट्रपति असद देश छोड़कर भाग गए, और विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम के हाथ में बागडोर आ गई. ये एक चरमपंथी संगठन था, जिसके पास राजनीतिक तजुर्बा कुछ था नहीं. तब ये शंका जताई गई कि देश के हाल दोबारा खराब न होने लगें.
वही हो रहा है. हालांकि सत्ता कुछ समय के लिए अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा के पास है लेकिन देश में अस्थिरता के बीच सुन्नी समुदाय अलावियों पर हावी हो गया. वो बशर अल-असद के दौर में हुई नाइंसाफियों का बदला आम अलावियों पर हिंसा से ले रहा है. इसमें भी कई चरमपंथी गुट सेना के साथ मिलकर हमले कर रहे हैं. खुद राष्ट्रपति ने बीच-बचाव की कोशिश की, लेकिन सतही तौर पर ही.
असद और अलावियों का क्या संबंध
अलावी समुदाय बड़े पैमाने पर बशर अल-असद के समर्थन में रहा. इसकी कई वजहें हैं. जैसे असद परिवार का बैकग्राउंड ही अलावी है. उनके पिता ने सत्ता में आते ही सरकारी और सैन्य पदों पर बड़ी संख्या में अलावियों को अपॉइंट किया. उन्हें सत्ता और रिसोर्सेज में सीधा और मोटा हिस्सा मिलने लगा, जबकि उनकी आबादी करीब 12 फीसदी ही है, वहीं सुन्नी जनसंख्या 74 प्रतिशत.
मेजोरिटी सुन्नी समुदाय उनपर नाराज रहने लगा और इस मौके पर जबकि अलावियों की सेफ्टी लेयर कमजोर हो चुकी, उनपर हमला कर दिया. लेकिन सत्ता में बड़ी भागीदारी ही अकेला कारण नहीं, सुन्नियों के गुस्से के पीछे धार्मिक कारण भी हैं.
असद सरकार का शासन धर्मनिरपेक्ष था, जिससे सुन्नी धार्मिक नेता और कट्टरपंथी गुट असद के खिलाफ हो गए. सुन्नी समुदाय के कई हिस्से अलावी मुस्लिमों को धर्म से भटका हुआ मानते हैं. असद परिवार के दौर में सीरिया में मस्जिदों पर सरकारी नियंत्रण था, और सुन्नी धार्मिक नेताओं को सरकार की आलोचना की इजाजत नहीं थी.
साल 2011 में जब अरब स्प्रिंग के दौरान सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट हुए, तो असद शासन ने इन्हें दबाने के लिए सुरक्षा बलों का सहारा लिया, जिसमें अलावी मुस्लिम ही ज्यादा थे. सरकारी दमन के कारण हजारों सुन्नी नागरिक मारे गए, जिससे समुदाय में असद और अलावियों के लिए गुस्सा बढ़ता गया. असद के जाने के तीन महीनों के भीतर सुन्नी, खासकर लड़ाका गुट एक्टिव हुए और एक तरह से पुराने हिसाब चुकाने लगे.
क्यों अलग माने जाते रहे अलावी
यह अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय है, जो शियाओं से जन्मा. लेकिन अलावियों के धार्मिक तौर-तरीके इस्लाम के बाकी समुदायों से काफी अलग हैं, जिसके कारण वे अलग-थलग रहे. वे पुर्नजन्म पर यकीन करते हैं और मानते हैं कि आत्मा अपने अच्छे या बुरे कर्मों के मुताबिक नया जन्म लेती है.
वे कुरान को तो मानते हैं लेकिन उनकी परंपराओं में ईसाई, पारसी, और कई दूसरे धर्मों का मिलाजुला असर दिखता है. उनके कई अनुष्ठान खुफिया होते हैं और बाहरी लोगों को इनमें शामिल होने की इजाजत नहीं होती. महिलाएं आमतौर पर परदा नहीं करती हैं. इस बात को लेकर भी सीरिया में दो खेमे होते रहे. वैसे सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति असद चूंकि इसी कम्युनिटी से थे, लिहाजा वे इस देश में सबसे ज्यादा मजबूत रहे. सीरिया के अलावा तुर्की के एक हिस्से, ईरान, इराक और गाजा-वेस्ट बैंक में भी ये धार्मिक आबादी मिलती है.