नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया जाएगा। देश के सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पिछले सप्ताह उनके आधिकारिक बंगले में भारी मात्रा में नकदी पाए जाने के बाद यह निर्णय लिया। बिल्डिंग में आग लगने के बाद भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई। जज के परिवार के सदस्यों ने इमरजेंसी सेवाओं को बुलाया था। इसके बाद पुलिस भी बुलाई गई थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह घटना 14 मार्च को होली समारोह के दौरान हुई। उस समय जस्टिस अपने घर से बाहर थे।

कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम ऑनर्स की डिग्री हासिल की। यशवंत वर्मा ने 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से लॉ में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 08 अगस्त, 1992 को एडवोकेट के रूप में नामांकित हुए। एडवोकेट यशवंत वर्मा ने संवैधानिक, इंडस्ट्रियल विवाद, कॉर्पोरेट, टैक्सेशन, पर्यावरण और कानून की संबद्ध शाखाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार के मामलों को संभालने वाले मुख्य रूप से दीवानी मुकदमों की पैरवी की। 2006 से प्रोमोट होने तक जस्टिस यशवंत वर्मा तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के विशेष वकील भी रहे।

2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में बने थे जज

यशवंत वर्मा साल 2012 से अगस्त, 2013 तक उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य स्थायी वकील रहे। इसके बाद कोर्ट की तरफ से वह सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित हुए। 13 अक्टूबर, 2014 को एडिशनल जज के रूप में उनका प्रोमोशन हुआ। 01 फरवरी, 2016 को उन्हें परमानेंट जज के रूप में शपथ ली। 11 अक्टूबर, 2021 को उनका दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर हो गया।

न्यायपालिका पर कार्रवाई का था दबाव

किसी जज के घर पर बेहिसाब नकदी का पाया जाना एक दुर्लभ और गंभीर मामला है। न्यायपालिका पर अब अपनी ईमानदारी बनाए रखने और जनता का विश्वास बहाल करने के लिए त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करने का दबाव था। कॉलेजियम ने तबादले की सिफारिश की लेकिन कुछ सदस्यों ने चिंता जताई कि न्यायिक ईमानदारी को बनाए रखने के लिए यह पर्याप्त नहीं हो सकता। ऐसे सुझाव थे कि जस्टिस वर्मा को इस्तीफा दे देना चाहिए और अगर उन्होंने इनकार कर दिया, तो संसद की तरफ से संभावित निष्कासन की दिशा में एक प्रारंभिक कदम के रूप में आंतरिक जांच शुरू की जानी चाहिए।

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