नई दिल्‍ली. भारत और नेपाल के बीच रिश्ते सदियों पुराने और मजबूत हैं. दोनों देशों की जमीनी सीमाएं लगती हैं. भारत पड़ोसी देश नेपाल के लिए गेटवे की तरह है. भारत ही है, जिसके माध्‍यम से नेपाल दुनिया से जुड़ता है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच कई अनूठी परंपराएं भी हैं, जिनमें इंडियन आर्मी चीफ को नेपाल का मानद सेना प्रमुख नियुक्‍त करना भी एक है. आपको यह बात सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन यह सोलह आने सच है. भारतीय सेना में नेपाल के गोरखा भी दुश्मनों को खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं और वह भी पूरी शिद्दत से. इतना ही नहीं, पड़ोसी देश भारतीय सेना को भी उतना ही सम्‍मान देते हैं, जैसा भारत के सैनिकों को दिया जाता है. भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी नेपाल के 4 दिन के दौरे पर काठमांडू पहुचे हैं. इस मौके पर उन्हें नेपाल के राष्ट्रपति रामचन्द्र पाउडेल ने नेपाली सेना के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया है.

सेना प्रमुख के तौर पर जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यह पहला नेपाल दौरा है. काठमांडू पहुंचने के बाद नेपाली राष्‍ट्रपति रामचंद्र पाउडेल ने जनरल द्विवेदी को नेपाली आर्मी का ऑनरेरी यानी मानदी प्रमुख नियुक्‍त किया. इस दौरान उन्‍हें बकायदा नियुक्ति पत्र भी एक समारोह में सौंपा गया. आपको सुनकर हैरानी जरूर होगी कि आखिर भारतीय सेना प्रमुख को नेपाल के सेना प्रमुख की उपाधि क्‍यों दी गई है? दिलचस्‍प बात यह है कि भारतीय नेपाल की सेना में भी नहीं है. इसके बावजूद ऐसा क्‍यों? इस सवाल का जवाब जानकार आप चौंक जाएंगे. यह पहली बार नहीं हुआ है. दरअसल, जो भी भारतीय सेना का नया प्रमुख बनता है, उन्हें नेपाल सरकार की तरफ से नेपाली सेना प्रमुख की मानद उपाध‍ि से नवाज़ा जाता है. ठीक ऐसा ही नेपाल के सेना प्रमुख के साथ भारत में भी होता है.

नेपाल के आर्मी चीफ को भी समान सम्‍मान
भारत भी पड़ोसी देश नेपाल के सेना प्रमुख को भारतीय सेना प्रमुख की मानद उपाधि से नवाज‍ता है. अगले महीने नेपाल के सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल भारत दौरे पर आने वाले हैं. उस दौरान सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें भारतीय सेना प्रमुख की मानद उपाधि से नवाजेंगीं.

कब से शुरू हुई यह प्रथा?
साल 1950 से यह प्रथा शुरू हुई और वह आज भी बदस्तूर जारी है. यह परंपरा दोनों देशो के बीच के रिश्ते और खास तौर पर सैन्य रिश्तों की मज़बूत को दिखाता है. कई बार ऐसा भी हुआ है कि भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में खटास आई, लेकिन यह प्रथा कभी बंद नहीं हुई. इस मानद उपाधि के बाद सेना प्रमुख को वही प्रोटोकॉल मिलता है जो कि उनके देश के सेना प्रमुख को दिया जाता है. हर तीन साल बाद जैसे ही सेना प्रमुख का कार्यकाल खत्म होता है और नया सेना प्रमुख नियुक्त होता है तो पहले दौरे में ही उन्हें यह सम्मान दिया जाता है. यह सम्मान राष्ट्रपति की तरफ से राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में दिया जाता है.

अनोखा सम्‍मान
सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी को भी शीतल निवास में अलंकरण समारोह में इस सम्मान से नवाज़ा, जिसमें एक बैटन, तलवार और नेपाली सेना प्रमुख की कैप दी गई. हांलाकि, यह मानद उपाधि है, एक सम्मान है और इसका नेपाली सेना पर भारतीय सेना का कोई नियंत्रण नहीं आ जाता.

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