देश में जातिगत जनगणना को लेकर समय समय पर चर्चा होती रही है. इस मुद्दे पर विपक्षी दल मोदी सरकार को लगातार घेरते रहे और भविष्य में भी इस चर्चा होती रहेगी. फिलहाल इसकी बात अभी छोड़ दीजिए. धरती पर इंसानों की आबादी कितनी है, इसकी गिनती में भी लोचा है. एक स्टडी में इसका दावा किया गया है. नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में दावा किया गया है कि ग्लोबल पॉपुलेशन की काउंटिंग कम की गई है और अरबों लोगों का हिसाब नहीं लगाया गया है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के मुताबिक, इस समय दुनिया की आबादी लगभग 8.2 बिलियन यानी 820 करोड़ है और अनुमान है कि 2080 के मिडिल तक यह 10 बिलियन यानी 1000 करोड़ से अधिक हो जाएगी. हालांकि, फिनलैंड में आल्टो यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ने पाया कि इन अनुमानों में ग्रामीण आबादी के आंकड़े को अंडरकाउंट किया गया है. 1975 से 2010 के दौरान ये आंकड़े 53 से 84 फीसदी के बीच हो सकते हैं.

ग्रामीण आबादी की गिनती में लोचा

स्टडी से जुड़े एक पीएचडी स्कॉलर जोसियास लैंग-रिटर ने कहा कि पहली बार हमारा अध्ययन इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि ग्रामीण आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ग्लोबल पॉपुलेशन डेटासेट से गायब हो सकता है. उन्होंने कहा कि इन डेटासेट का उपयोग हजारों अध्ययनों में किया गया है. फिर भी इसका मूल्यांकन सही तरह से नहीं किया गया. इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने पांच सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले वैश्विक जनसंख्या डेटासेट (वर्ल्डपॉप, जीडब्ल्यूपी, जीआरयूएमपी, लैंडस्कैन और जीएचएस-पीओपी) का विश्लेषण किया है.

शोधकर्ताओं ने किया ये दावा

शोधकर्ताओं ने दावा किया कि 2012 की जनगणना में शायद पैराग्वे की आबादी का एक चौथाई हिस्सा छूट गया. इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि संघर्ष और हिंसा से प्रभावित समुदायों तक पहुंचना कठिन है. जनगणना करने वालों को अक्सर भाषा संबंधी बाधाओं और भागीदारी में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है.

स्टडी 1975-2010 की अवधि के मानचित्रों पर केंद्रित था, क्योंकि बाद के वर्षों के डेटा की कमी थी, इसलिए निष्कर्षों से पता चला कि 2010 के डेटासेट में सबसे कम पूर्वाग्रह था. वैश्विक जनसंख्या डेटासेट ग्रामीण आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को छोड़ देता है. जनसंख्या की कम गणना के गंभीर परिणाम हो सकते हैं क्योंकि सरकारें वैश्विक जनसंख्या डेटा पर निर्भर करते हैं.

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