दिल्ली में एक ऐसी सड़क है, जिसका नाम सुनते ही लोगों के मन में अजीब-सी हलचल होने लगती है। यह कोई आम सड़क नहीं, बल्कि एक ऐसा इलाका है जहां रात की दुनिया अलग ही रंग में ढल जाती है। स्कूल के दिनों में जब पहली बार इस जगह का नाम सुना था, तब मन में सवाल उठा था—आखिर यह जगह कैसी होगी? फिल्मों में दिखाए गए कोठों की छवि आंखों के सामने घूमने लगती थी, जहां औरतें भारी मेकअप में ग्राहकों को लुभाती दिखती थीं। सालों बाद, उसी जिज्ञासा ने मुझे जी.बी. रोड की सच्चाई जानने के लिए मजबूर कर दिया।
रविवार की सुबह जब मैं वहां पहुंची, तो सड़क किसी भी आम दिल्ली की सड़क जैसी ही लगी। दोनों ओर दुकानों के शटर बंद थे, और उन्हीं दुकानों के बीच संकरी सीढ़ियां ऊपर की ओर जाती थीं। इन्हीं सीढ़ियों के पीछे, दीवारों पर लिखे नंबरों से कोठों की पहचान होती है। सड़कों पर कुछ लोग चहलकदमी कर रहे थे, जो हमें अजीब नजरों से देख रहे थे। हमने कोठा नंबर 60 की ओर कदम बढ़ाने का फैसला किया।
एक आदमी तय करता है लड़कियों की कीमत
मेरे साथ एक एनजीओ में काम करने वाला दोस्त था, जिससे हिम्मत मिली कि ऊपर जाया जा सके। संकरी और गंदी सीढ़ियों से होते हुए जब हम कोठे में पहुंचे, तो माहौल पूरी तरह शांत था। शायद वहां रहने वाले अभी सो रहे थे। आवाज देने पर एक शख्स बाहर निकला, जो हमें अचरज भरी नजरों से घूर रहा था।
थोड़ी बातचीत के बाद उसने बताया कि उसका नाम राजू (बदला हुआ नाम) है, और वह पिछले नौ सालों से यहां रह रहा है। उसका काम है लड़कियों (सेक्स वर्कर्स) की कीमत तय करना। कौन कितने में जाएगी, कौन ज्यादा कमाएगी, यह सब राजू जैसे लोग ही तय करते हैं।
पहचान गुप्त रखने की शर्त पर राजू ने हमारी मुलाकात सुष्मिता (बदला हुआ नाम) से कराई। उसे अभी-अभी जगाया गया था। मैं उससे अकेले में बात करना चाहती थी, लेकिन राजू को डर था कि कहीं वह कुछ ऐसा न बता दे, जो बाहर नहीं जाना चाहिए।
नौकरी का झांसा देकर जिस्मफरोशी में धकेली गई सुष्मिता
23 साल की सुष्मिता पश्चिम बंगाल की रहने वाली है। तीन साल पहले उसे नौकरी का लालच देकर दिल्ली लाया गया और फिर बेच दिया गया। वह ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थी। उसने बताया—
“हमारा घर बहुत गरीब था। एक पड़ोसी अकसर हमारे घर आता-जाता था। उसने कहा कि दिल्ली में बहुत अच्छी नौकरी मिलेगी। मैं उसके साथ दिल्ली आ गई। पहले एक कमरे में रखा और फिर अगले दिन यहां छोड़ दिया गया।”
यह पूछने पर कि क्या वह अपने घर लौटना चाहती है? उसने लंबी चुप्पी के बाद कहा—
“नहीं, अब घर नहीं जा सकती। बहुत मजबूरी है। यहां खाने को मिल जाता है, कुछ पैसे भी मिल जाते हैं, जिन्हें छिपाकर रखना पड़ता है।”
इतना कहकर वह चुप हो गई, लेकिन उसकी आंखों में बयां न की जा सकने वाली कहानियां तैर रही थीं। देखने में वह 23 की थी, लेकिन उसकी दुबली-पतली काया देखकर लगता था मानो 15-16 साल की कोई बच्ची हो।
13-14 लड़कियां एक ही कोठे पर रहती हैं
जी.बी. रोड के कोठों की पहली और दूसरी मंजिलों पर जिस्मफरोशी का धंधा चलता है। मैं अंदर झांकने की कोशिश करती हूं तो एक अजीब-सी बदबू आती है, जिससे नाक ढकने पर मजबूर होना पड़ता है। छोटे, नमीयुक्त कमरे, जहां हवा तक का आना मुश्किल है। सोचती हूं, कोई कैसे यहां रह सकता है?
राजू बताता है कि एक कोठे में 13-14 सेक्स वर्कर होती हैं और सभी अपनी मर्जी से धंधा करती हैं। लेकिन जब गीता (बदला हुआ नाम) से बात हुई, तो यह दावा झूठा लगने लगा।
गीता कहती है—
“जैसे आप नौकरी करती हो, वैसे ही हम यह काम करते हैं। आप बताइए, हमें कौन नौकरी देगा? हम जिस्म बेचकर ही घर चला रहे हैं। बेटी को पढ़ा रही हूं, यह छोड़ दूंगी तो उसका क्या होगा?”
एक साल में तीन कोठे बदल चुकी गीता
गीता ने बताया कि पिछले एक साल में उसने तीन बार कोठा बदला है। वजह पूछी तो कहा—
“जहां पैसे अच्छे नहीं मिलते, वहां से जाना ही पड़ता है।”
गीता की दोस्त रेशमा (बदला हुआ नाम) कहती है—
“हम जैसे हैं, खुश हैं। सरकार ने हमारे लिए क्या किया? हमारे पास ना राशन कार्ड है, ना वोटर कार्ड, ना आधार। हमसे तो कोई वोट मांगने भी नहीं आता।”
बातचीत के दौरान एहसास हुआ कि इन औरतों की मजबूरियां उनकी सबसे बड़ी बेड़ियां बन चुकी हैं। वे बाहर निकलने के बारे में सोचती भी नहीं, क्योंकि उन्हें कहीं और अपनाने वाला ही नहीं है।
रात आठ बजे के बाद बदल जाता है माहौल
जी.बी. रोड का पूरा नाम गारस्टिन बास्टियन रोड है। यहां 100 साल पुरानी इमारतें हैं। जगह-जगह दलालों के झांसे में न आने और जेबकतरों से सावधान रहने की चेतावनी लिखी हुई है।
राजू बताता है कि रात आठ बजे के बाद यहां का माहौल पूरी तरह बदल जाता है। कोठों पर आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगती है। अकेले आए व्यक्ति को जेबकतरे लूट लेते हैं, और कई बार चाकूबाजी तक हो जाती है।
यहां आकर एहसास होता है कि यह एक अलग ही दुनिया है। एक ऐसी दुनिया, जहां रात के अंधेरे में कई जिंदगी मजबूरी के दलदल में धंस चुकी हैं। उनके लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं, और अगर रास्ता हो भी, तो उन्हें उस रास्ते का पता नहीं।
मैं वहां से लौट आई, लेकिन दिल में हजारों सवाल छोड़ आई। शायद अगली बार लौटूंगी, और इन सवालों के जवाब भी साथ लाऊंगी।