दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करने के साथ भारतीय जनता पार्टी लगभग 30 साल बाद सत्ता में लौट रही है. खराब सड़कें, टूटी सीवरलाइन से बहता गंदा पानी, कूड़े के ढेर, मुहल्लों की चरमरा चुकी सफाई व्यवस्था से त्रस्त लोगों की उम्मीदों को पंख लग चुके हैं. लोगों को ऐसा लगता है कि बीजेपी की सरकार बनते ही उनकी तमाम समस्याएं छूमंतर हो जाएंगी. पर भारत में सरकारें आती जाती रहती हैं.समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं. बहुत कम ऐसे मुख्यमंत्री होते हैं जिनके कार्यकाल में व्यापक परिवर्तन देखने को मिलते हैं. दूसरे दिल्ली अब भी पूर्ण राज्य नहीं है. यहां की सरकार के पास बहुत से मंत्रालय केंद्र सरकार के पास हैं. जहां तक अधिकारों की बात है, वह भी उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच इस तरह गुत्थम गुत्था है कि समझना आसान नहीं है कि अमुक समस्या के सुधार के लिए दिल्ली सरकार को कितने कदम चलना है. जाहिर है कि दिल्ली का विकास कराने के लिए किसी भी मुख्यमंत्री को कई मोर्चों पर काम करना होगा.
1. एलजी बड़ा है या दिल्ली का सीएम?
जब तक दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी एलजी और दिल्ली सरकार में तनाव चरम पर था. भाजपा नीत केंद्र सरकार राजधानी दिल्ली पर सख्ती से नियंत्रित करने के कोई न कोई उपाय ढूढती रहती थी .अब उसकी अपनी सरकार और मुख्यमंत्री होंगे तब भी क्या केंद्र सरकार ऐसा करेगी? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या एलजी वीके सक्सेना अब भी दिल्ली सरकार पर हावी होने की कोशिश करेंगे. कानूनी रूप से दिल्ली का उपराज्यपाल अब दिल्ली की चुनी हुई सरकार से बहुत पावरफुल हो चुका है. लीगल रूप से अधिक ताकतवर होकर भी क्या उप राज्यपाल दिल्ली के शासन-प्रशासन के साथ नरम रुख अख्तियार करेंगे? यमुना की सफाई का काम दिल्ली सरकार के गठन के पहले ही शुरू करके वीके सक्सेना ने यह जता दिया है कि वह अपना महत्व कम करने वाले नहीं हैं. तो दूसरी तरफ बीजेपी संगठन भी यही चाहेगा कि सीएम के रूप में चुना गया व्यक्ति एलजी के प्रभाव में रहकर न काम करे.
2023 में एक अध्यादेश के जरिये राष्ट्रीय राजधानी नागरिक सेवा प्राधिकरण की स्थापना की गई है. इस प्राधिकरण में मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के प्रमुख गृह सचिव शामिल हैं. यह प्राधिकरण अधिकारियों के तबादलों और नियुक्तियों के बारे में तथा अनुशासन से जुड़े मामलों में उप राज्यपाल को सुझाव दे सकता है. इसका सीधा मतलब है कि दिल्ली में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण या तैनाती का अधिकार नहीं है. क्या अब भी एलजी उतने ही पावरफुल रहेंगे?
2. घोषणा पत्र में किये गए वादे पूरे करना टेढ़ी खीर
गरीब महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का संकल्प दिल्ली में बीजेपी ने लिया है. मुश्किल यह है कि पंजाब सरकार एक हजार रुपया महीना नहीं दे पा रही है. महाराष्ट्र में भी सरकार कई योजनाओं को लागू करने में परेशानी महसूस कर रही है. कर्नाटक और हिमाचल में जनता से किए गए वादे पूरा करने का अभी तक रिकॉर्ड बहुत खराब है. दिल्ली में भी मुफ्त बिजली, मुफ्त परिवहन ही मुश्किल से पिछली सरकार पूरा कर पा रही थी . बीजेपी ने अपने संकल्पपत्र में दिल्ली के लोगों को 10 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज का भी वादा किया है. बीजेपी ने कहा था कि 5 लाख रुपये तक इलाज आयुष्मान योजना और बाकी 5 लाख रुपये दिल्ली में बीजेपी की सरकार देगी. इसके अलावा ओपीडी सुविधाएं और लैब टेस्ट भी मुफ्त करने का वादा किया गया है. ये सब आसान नहीं होगा पूरा करना.
3. आम आदमी पार्टी के रूप में है एक मजबूत विपक्ष
भाजपा यह बात अच्छी तरह समझती है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पकड़ बिल्कुल खत्म नहीं हुई है. आप 14 सीटों पर जितने वोटों से हारी है, उससे ज्यादा वोट उन सीटों पर कांग्रेस को मिले हैं. मगर केंद्र सरकार के समक्ष दिल्ली की बीजेपी सरकार कमजोर दिखेगी तो आप बिना समय गंवाए भुनाना चाहेगी. यूं भी आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल जब सत्ता में थे तो उनके विरोध का लेवल बहुत हाई होता था , अब तो विपक्ष में हैं इसलिए उनकी बोली और तीखी हो जाएगी. विधानसभा के अंदर आम आदमी पार्टी का संख्या बल और बाहर आम आदमी पार्टी की सधी हुई तैयारी से बीजेपी सरकार के लिए निपटने आसान नहीं होगा.
4. एमसीडी पर नियंत्रण अब भी AAP के पास
एमसीडी फिलहाल आम आदमी पार्टी के नियंत्रण में है. रोजमर्रा की जिन समस्याओं से आम लोगों का हर दिन आमना सामना होता है उनके निवारण का काम एमसीडी के पास है. जाहिर है कि आम आदमी पार्टी का सहयोग तो मिलने से रहा. केंद्र के पास दो विकल्प होगा, पहला- वह एमसीडी भंग करे और नए चुनाव कराए और दूसरा, आयुक्तों के जरिये निगम चलाए. जाहिर है कि ये इतना आसान नहीं होगा.
5. और सबसे अहम, दिल्ली की जर्जर तस्वीर बदलना…
पूरी दिल्ली की सड़कें जर्जर हो चुकी हैं. कूड़े के पहाड़ लगे पड़े हैं. नालियां ओवर फ्लो होकर सड़कों पर बह रही हैं. झुग्गियों में ही नहीं घनी बस्तियों में भी जीना दुश्वार हो गया है. गर्मी आते ही पानी और बिजली की किल्लत सामने आने वाली है. इन सारी समस्याओं को एक साथ हल करना आसान नहीं होगा. गर्मी के खत्म होते ही बरसात शुरू होगी . बरसात से पहले गलियों में पानी लगना, थोड़ी ही बरसात में मुहल्लों के डूब जाने से बचाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर काम करना होगा. जनता को पेशेंस नहीं होता. पब्लिक चाहेगी कि कोई जादुई छड़ी से सारी समस्याएं को हल कर दिया जाए. जाहिर है कि एमसीडी, केंद्र सरकार और एलजी के बीच कोऑर्डिनेशन बनाकर चलने के लिए बहुत धैर्य की जरूरत होगी.