Last Updated:
Lok Sabha Delimitation: लोकसभा के परिसीमन को लेकर साउथ में सियासी बवंडर उठा है! तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन ने 1971 वाली शर्त रख दी है. 2001 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सामने भी यह सवाल आया था.

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
- स्टालिन ने 1971 की जनगणना को आधार बनाने की मांग की.
- 2001 में वाजपेयी सरकार ने परिसीमन 2026 तक स्थगित किया था.
- 84वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2001 में पारित हुआ.
नई दिल्ली: दक्षिण भारत में इस वक्त एक जबरदस्त सियासी तूफान खड़ा हो गया है. वजह है परिसीमन (Delimitation), यानी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों के नए बंटवारे की प्रक्रिया. और इस विरोध की सबसे बुलंद आवाज बनकर उभरे हैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK प्रमुख एमके स्टालिन. स्टालिन ने हाल ही में एक ऑल-पार्टी मीटिंग की अध्यक्षता की, जिसमें यह मांग उठाई गई कि किसी भी सीट के पुनः निर्धारण के लिए 1971 की जनगणना को ही आधार बनाया जाए और यह नियम 2026 से 30 साल आगे तक जारी रखा जाए. सीधा मतलब- 2056 तक कोई बदलाव न हो! सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों?
वाजपेयी सरकार ने 2001 में लिया बड़ा फैसला
साल 2001 में, जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA की सरकार थी, तब यह तय किया गया था कि 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का निर्धारण 2026 तक स्थगित कर दिया जाएगा. अब 2026 करीब है और इस मुद्दे पर फिर से हलचल तेज हो रही है.
21 अगस्त 2001 को संसद में इस मुद्दे पर बहस के दौरान तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली ने इस फैसले का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों ने परिवार नियोजन नीति को बहुत प्रभावी ढंग से लागू किया है, जबकि कुछ अन्य इसमें पिछड़ गए हैं. इसलिए, जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण पर काम किया है, उन्हें सीटों की संख्या कम होने के कारण ‘सजा’ नहीं दी जानी चाहिए.
कांग्रेस नेता शिवराज पार्टिल ने दिया था फॉर्मूला
शिवराज पाटिल उस वक्त कांग्रेस के सीनियर लीडर थे. उन्होंने एक अनोखा फॉर्मूला सुझाया. उनका तर्क था कि जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता हासिल की है, उनकी सीटें भी बढ़ाई जाएं ताकि एक MP को बहुत अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व न करना पड़े. पाटिल ने संसद में यह सवाल भी उठाया – “क्या सीटों की संख्या को स्थगित करने से जनसंख्या वृद्धि रुक जाएगी?” उन्होंने एक और सुझाव दिया, 2 से ज्यादा बच्चों वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए!
जेटली और पाटिल की बहस
जहां जेटली ने जनसंख्या असंतुलन को देखते हुए 25 साल के लिए परिसीमन को स्थगित करने का तर्क दिया, वहीं Patil का मानना था कि सीटों को बढ़ाने का एक संतुलित तरीका निकाला जा सकता है. पाटिल ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि 2001 में एक MP औसतन 10 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा था, लेकिन 2026 तक यह संख्या 15 लाख हो जाएगी. आउटर दिल्ली और ठाणे जैसी लोकसभा सीटों में 2001 में ही लगभग 30 लाख वोटर्स थे!
पाटिल ने चीन का उदाहरण देते हुए कहा, “वहां People’s National Congress में 3,000 मेंबर्स हैं, जबकि हमारे यहां MPs की संख्या बढ़ाने को लेकर इतना विवाद क्यों?”
CPI(M) नेता सोमनाथ चटर्जी ने इस बिल का समर्थन किया लेकिन इस तर्क को खारिज कर दिया कि यह परिवार नियोजन को बढ़ावा देगा. वहीं, RJD नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस फैसले का जोरदार विरोध किया. उनका कहना था, “लोकतंत्र वोटों की ताकत पर टिका होता है. इसलिए किसी राज्य की लोकसभा सीटों की संख्या उसकी जनसंख्या के आधार पर तय होनी चाहिए.”
तब रामदास अठावले ने किया था विरोध
इस बिल को जब वोटिंग के लिए रखा गया तो लोकसभा में 297 वोट इसके पक्ष में पड़े और केवल 2 वोट खिलाफ. दिलचस्प बात यह थी कि विरोध करने वालों में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (A) के नेता और वर्तमान केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले भी शामिल थे. इसके बाद राज्यसभा में भी यह बिल पास हुआ और 84वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2001 अस्तित्व में आया. इसके तहत 1971 Census के आधार पर लोकसभा सीटों का निर्धारण 2026 तक स्थगित कर दिया गया. सरकार के अनुसार, “यह कदम राज्यों को परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करेगा और सीटों का असंतुलन दूर करने में मदद करेगा.”
पिछली बार कब हुआ था परिसीमन?
भारत में अब तक केवल तीन बार परिसीमन हुआ है- 1951, 1961 और 1971 की जनगणना के आधार पर. 1973 में सीटों की संख्या को अंतिम बार बदला गया था. 2002 में जो प्रक्रिया हुई, उसमें सिर्फ निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं दोबारा खींची गईं, लेकिन सीटों की संख्या में बदलाव नहीं हुआ.
New Delhi,Delhi
March 15, 2025, 22:24 IST
2001 में भी उठा था परिसीमन वाला तूफान, तब वाजपेयी सरकार ने कैसे पाया काबू?