बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जालसाजों की ओर से आवेदकों को अमेरिका में प्रवास कराने में मदद करने के लिए फर्जी शैक्षणिक डिग्रियां और कार्य अनुभव प्रमाण पत्र तैयार किए जाते थे। सात लोगों पर इस धंधे को चलाने, फर्जी दस्तावेजों के लिए मोटी फीस वसूलने और वीजा आवेदनों को मजबूत दिखाने के लिए बैंक बैलेंस बढ़ाने में मदद करने का आरोप है। आरोपियों में से तीन लुधियाना के हैं।
US वीजा फ्रॉड का मामला कैसे आया सामने?
रिपोर्ट के मुताबिक, यह जांच नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के क्षेत्रीय सुरक्षा कार्यालय के ओवरसीज क्रिमिनल इन्वेस्टिगेटर एरिक सी. मोलिटर्स की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत के बाद शुरू हुई। पंजाब के पुलिस महानिदेशक गौरव यादव के आदेश पर एक विशेष जांच दल (SIT) गठित किया गया। एसआईटी ने मामले में जांच की और 17 सितंबर को रैकेट का पर्दाफाश हो गया।
US Visa फ्रॉड के कौन हैं आरोपी?
रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में शामिल आरोपियों में जीरकपुर के छत्त गांव के अमनदीप सिंह, उनकी पत्नी पूनम रानी, लुधियाना के अंकुर कोहर, बठिंडा के अक्षय शर्मा, मोहाली के कमलजोत कंसल, लुधियाना के रोहित भल्ला और बरनाला के कीर्ति सूद शामिल हैं। ये लोग रेड लीफ इमिग्रेशन और ओवरसीज पार्टनर एजुकेशन कंसल्टेंट्स जैसी फर्जी वीजा कंसल्टेंसी से जुड़े थे। इन्होंने अमेरिकी दूतावास को धोखा देने के लिए गलत जानकारी दी थी।
रिपोर्ट के अनुसार, शिकायत में हिमाचल प्रदेश की सिमरन ठाकुर, मानसा की लवली कौर, जगरांव की हरविंदर कौर, नवांशहर की रमनीत कौर और हरियाणा के राहुल कुमार का नाम शामिल है। इन लोगों ने आरोपियों की मदद से फर्जी डिग्री, वर्क सर्टिफिकेट और बैंक बैलेंस समेत फर्जी डॉक्यूमेंट मुहैया कराए। सिमरन ठाकुर ने बीएससी की फर्जी डिग्री के लिए दो लाख रुपये का भुगतान किया, जबकि लवली कौर ने फर्जी बैंक बैलेंस डॉक्यूमेंटेशन और वर्क सर्टिफिकेट के लिए 18,000 रुपये दिए। ये फर्जी दस्तावेज उनके अमेरिकी वीजा आवेदनों को मजबूत दिखाने के लिए तैयार किए गए थे।