महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह माताओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराए।
स्तनपान सिर्फ निजी प्रक्रिया नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकार का हिस्सा – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि
स्तनपान सिर्फ एक निजी प्रक्रिया नहीं, बल्कि महिला के प्रजनन अधिकार का अहम हिस्सा है।
यह मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
सरकार को माताओं के लिए सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर स्तनपान की सुविधाएं देनी होंगी।
नागरिकों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्तनपान कराने को कलंक की तरह न देखा जाए।
स्तनपान के लिए सुविधाएं देना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि स्तनपान बच्चे के जीवन, अस्तित्व और स्वस्थ विकास का अभिन्न हिस्सा है।
- यह महिला के अधिकारों से जुड़ा हुआ है, इसलिए राज्य का कर्तव्य बनता है कि वह उचित माहौल और सुविधाएं प्रदान करे।
- कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह सभी राज्य सरकारों को इस विषय में निर्देश जारी करे।
सरकार की एडवाइजरी का भी जिक्र
यह फैसला अव्यान फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें मांग की गई थी कि सरकार सार्वजनिक स्थानों पर माताओं के लिए स्तनपान और देखभाल कक्ष जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराए।
कोर्ट ने फरवरी 2024 में केंद्र सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि
कार्यस्थलों और सार्वजनिक इमारतों में स्तनपान कक्ष और क्रेच की सुविधाएं दी जानी चाहिए।
सरकार को इसे सख्ती से लागू कराना चाहिए।
राज्य सरकारों को दो हफ्तों में भेजें निर्देश – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एडवाइजरी संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15(3) (महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान) के अनुरूप है।
केंद्र सरकार को दो हफ्तों के भीतर सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश भेजने होंगे ताकि सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान की सुविधाएं जल्द लागू हो सकें।
नई इमारतों में स्तनपान सुविधाओं की योजना पहले से बनाई जाए और मौजूदा सार्वजनिक स्थानों पर भी जहां संभव हो, ऐसी व्यवस्था की जाए।