व्हाइट हाउस ने मंगलवार को एक अहम जानकारी साझा की जिसमें बताया गया कि रूस और यूक्रेन ने सऊदी अरब में हुई बातचीत के दौरान ब्लैक सी (काला सागर) में चलने वाले जहाजों पर किसी भी प्रकार के सैन्य हमले न करने पर सहमति जता दी है। इस ऐतिहासिक समझौते को अमेरिका, रूस और यूक्रेन के अधिकारियों के बीच तीन दिनों तक चली गहन चर्चा के बाद अंतिम रूप दिया गया।
व्हाइट हाउस के अनुसार, इस बैठक में भाग लेने वाले हर देश ने कुछ मूलभूत बातों पर सहमति जताई है—जैसे कि सुरक्षित नेविगेशन को सुनिश्चित करना, बल प्रयोग से बचना, और ब्लैक सी में कमर्शियल जहाजों का किसी भी प्रकार के सैन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग न करना।
अमेरिका को उम्मीद: खुलेगा शांति का रास्ता
व्हाइट हाउस की ओर से यह भी कहा गया कि अमेरिका को उम्मीद है कि इस समझौते से लंबे समय तक क्षेत्र में स्थायित्व और शांति की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति होगी। तीनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने मिलकर यह तय किया है कि ब्लैक सी में चलने वाले जहाजों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।
लावरोव का बयान: बिना सख्त शर्तों के नहीं होगा समझौता
इस समझौते के ऐलान से कुछ ही समय पहले, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने साफ शब्दों में कहा था कि ब्लैक सी में कोई भी समझौता तब तक नहीं हो सकता जब तक कि इसमें बेहद सख्त शर्तें ना हों। उन्होंने कहा कि यह ज़रूरी है कि अमेरिका, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की को यह आदेश दे कि वह समझौते का पालन करें।
लावरोव ने मीडिया से कहा, “हमारे पास कीव के साथ किए गए पुराने समझौतों के कड़वे अनुभव हैं। इसलिए इस बार हमें स्पष्ट और मजबूत गारंटी चाहिए, और वह केवल अमेरिका ही दे सकता है।”
रक्षा मंत्रालय की चेतावनी: ब्लैक सी समझौते का उल्लंघन न हो
इस बीच, यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने एक सख्त चेतावनी जारी की है। उन्होंने कहा कि ब्लैक सी के पूर्वी हिस्से के बाहर यदि कोई भी रूसी सैन्य जहाज सक्रिय होता है तो उसे समझौते का सीधा उल्लंघन माना जाएगा।
ऊर्जा प्रतिष्ठानों पर हमले भी नहीं होंगे
व्हाइट हाउस ने यह भी पुष्टि की है कि दोनों पक्षों ने इस बात पर भी सहमति जताई है कि किसी भी ऊर्जा प्रतिष्ठान पर हमला नहीं किया जाएगा। इसके लिए एक विशेष व्यवस्था तैयार की जा रही है जिससे इस समझौते को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।
यह कदम ऐसे समय में आया है जब काला सागर में तनाव लगातार बढ़ रहा था और वैश्विक व्यापार पर भी इसके प्रभाव पड़ रहे थे। अब देखना यह है कि इस समझौते के बाद जमीनी हकीकत में कितना बदलाव आता है।