संभल में विवाद का एक नया किरदार सामने आ चुका है. सवाल उठ रहा है कि आखिर सालार गाजी कौन था? क्या वो एक आक्रांता था या फिर संत? अगर आक्रांता था तो फिर उसकी याद में बरसों से मेला क्यों आयोजित होता रहा और अगर वो संत था तो उसका नाम सोमनाथ मंदिर की लूट में क्यों लिया जाता है? संभल पुलिस ने इस बार उसके नाम पर मेला आयोजित करने से साफ इनकार कर दिया है.
संभल के एएसपी श्रीशचंद्र का बयान खूब वायरल हो रहा है. इसमें वह मुस्लिम वर्ग के कुछ लोगों से कहते हैं, “इतिहास गवाह है कि वह (सालार गाजी) गजनवी का सेनापति था. उसने सोमनाथ को लूटा था. कत्लेआम किया था पूरे देश में. किसी भी लुटेरे की याद में कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा. अगर किसी ने ये अवैध काम करते की कोशिश की तो कठोर कार्रवाई होगी. देश के साथ जिसने ऐसा किया है, उसका साथ जो देगा, वो भी देशद्रोही होगा.”
एडिश्नल एसपी के इस बयान के बाद संभल एक बार फिर सुर्खियों में है. विवाद की वजह सालार गाजी है, जिसके नाम पर होने वाले ‘गाजी मियां’ के मेले के आयोजन से संभल पुलिस ने साफ इनकार कर दिया है. इस तरह औरंगजेब के बाद अब सियासत में नए नाम ने एंट्री की है नाम है और वो है सैयद सालार मसूद गाजी.
बहराइच में गाजी की दरगाह
सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह यूपी के बहराइच जिले में है. सैकड़ों सालों से यहां एक बड़ा मेला लगता रहा है. बहराइच के अलावा भी यूपी के कई जिलों में गाजी मियां का मेला लगता रहा है, लेकिन इस बार पुलिस ने ऐसा करने से मेला आयोजकों को रोक दिया. मंगलवार को उस जगह पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात दिखा, जहां मेले का आयोजन किया जाना था.
अब सवाल ये है कि सैयद सालार मसूद गाजी कौन था? वो संत था या लुटेरा? अगर वो लुटेरा था तो इतने सालों से उसकी याद में मेला क्यों आयोजित किया जा रहा था? संभल की पुलिस मानती है कि सालार गाजी आक्रांता था, उसके नाम पर मेला आयोजित नहीं होना चाहिए. लेकिन मेला आयोजित करने वाले इस मामले को अदालत ले जाने की तैयारी में जुट गए हैं. लेकिन सवाल वही है कि सालार गाजी कौन था. इतिहासकार उसे लेकर क्या कहते हैं?
जिस सैयद सालार मसूद गाजी को लेकर विवाद छि़ड़ा है, उसका जन्म 11वीं सदी में साल 1014 में अजमेर में हुआ था. माना जाता है कि वो 1030-31 के आसपास अवध के इलाकों में आया, जहां राजा सुहेलदेव ने 21 राजाओं को साथ लेकर युद्ध किया और साल 1034 में सैयद सालार मसूद गाजी गिराया.
कैसे बनी गाजी की मजार?
अब सवाल ये है कि अगर सैयद सालार मसूद गाजी संत नहीं था तो उसकी बात में मजार कैसे बनी? उसके मरने के बाद बहराइच में उसकी मज़ार बनी और कई ज़िलों में उसकी इबादत होने लगी. बहराइच के दरगाह शरीफ में दफना दिया गया जबकि उस पर गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटने का भी आरोप था. लेकिन गाजी को सोमनाथ मंदिर पर हमले से जोड़ने को कई लोग सही नहीं मानते. कारण, सोमनाथ मंदिर पर हमले के वक्त गाजी की उम्र 11 साल थी. ये भी दावा किया जाता है कि इतिहास में हमले के वक्त उसकी मौजूदगी का जिक्र नहीं मिलता. ऐसे में संभल प्रशासन के फैसले को विरोधी BJP की राजनीति से जोड़कर देखते हैं.
सालार गाजी को देखने का नजरिया अलग-अलग है. जिससे जुड़ा अहम सवाल ये है कि अगर वो संत नहीं था, तो किसने उसकी छवि को बदला. माना जाता है कि 200 साल बाद 1250 में सैयद सालार मसूद गाजी की कब्र पर मकबरा बनाया गया, तब ये काम दिल्ली के मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने किया. इसके बाद कई मुगल शासकों ने मसूद गाजी को संत बताया. फिरोज शाह तुगलक ने मकबरे के पास कई गुंबद बनवाए. इसके बाद लगातार यहां गाजी की याद में मेले का आयोजन होता रहा.
उसकी दरगाह संत की तरह पवित्र हो गई नैट लेकिन संभल में मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले की इजाजत ना दिए जाने के बाद दरगाह पर भी जायरीनों की संख्या कम हो गई है. लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि जिस सैयद सालार मसूद गाजी पर सोमनाथ मंदिर को लूटने और तोड़ने का आरोप है, उसकी दरगाह पर बड़ी संख्या में हिंदू क्यों जाते हैं?