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Kolhapuri Chappal: सोलापुर के वाफले गांव के बालासाहेब वाघमारे पिछले 50 वर्षों से हाथ से बनी कोल्हापुरी चप्पलें तैयार कर रहे हैं. उनकी चप्पलों की मांग मंत्री, विधायक और सेलिब्रिटीज तक है.

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सोलापुर के बालासाहेब वाघमारे की चप्पलें मंत्री-विधायकों की पसंद

इरफान पटेल/सोलापुर: चप्पल का नाम आते ही सबसे पहले कोल्हापुरी चप्पल याद आती है. कोल्हापुरी चप्पल की शान और फायदे के कारण यह आम लोगों से लेकर सेलिब्रिटीज तक सभी को पसंद आती है. इसी कोल्हापुरी चप्पल के लिए सोलापुर का वाफले गांव भी मशहूर है. पिछले 50 सालों से वाफले के बालासाहेब सिद्राम वाघमारे पारंपरिक चमड़े की चप्पलें बना रहे हैं. खास बात यह है कि उनके उच्च शिक्षित बेटे भी इस काम में उनकी मदद करते हैं और उनकी चप्पलों की मांग मंत्री और विधायकों तक होती है.

पारंपरिक तरीके से कोल्हापुरी चप्पलें बनाई जाती हैं
बता दें कि मोहोल तालुका के वाफले गांव में पारंपरिक तरीके से कोल्हापुरी चप्पलें बनाई जाती हैं. बालासाहेब वाघमारे पिछले 50 सालों से यह काम कर रहे हैं. वाघमारे कोल्हापुरी और अन्य चमड़े की चप्पलें पारंपरिक तरीके से हाथ से ही बनाते हैं. एक कोल्हापुरी चप्पल बनाने में 3 से 4 दिन का समय लगता है. इस चप्पल बनाने के बिजनेस से वे महीने में 80 हजार से 1 लाख रुपये तक की कमाई कर रहे हैं.

इन चप्पलों की बड़ी मांग
कोल्हापुरी, विधायक पट्टा, कापशी कोल्हापुरी और पुरंदर जैसी विभिन्न चप्पलें यहां बनाई जाती हैं. चमड़े की चप्पलों में ग्राहकों को सबसे ज्यादा पसंद विधायक पट्टा चप्पलें हैं. विधायक पट्टा चप्पलों की कीमत ढाई से तीन हजार रुपये तक होती है. वहीं, कुछ युवाओं को पुरंदर चप्पलें सबसे ज्यादा पसंद आती हैं. कोल्हापुरी चप्पल बनाने के लिए जरूरी चमड़ा और कच्चा माल लातूर से लाया जाता है. कोल्हापुरी चप्पल पहनने से शरीर की गर्मी कम होती है और यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है, ऐसा वाघमारे बताते हैं.

अजित पवार समेत सेलिब्रिटीज को भाती हैं
बालासाहेब वाघमारे से उपमुख्यमंत्री अजित पवार, राजन पाटील आदि ने चप्पलें बनवाई हैं. इसके अलावा अन्य विधायक, सांसद, सरकारी अधिकारी, पुलिस अधिकारी भी उनसे कोल्हापुरी चप्पलें बनवाते हैं. बालासाहेब वाघमारे के पास 2 हजार रुपये से लेकर 6 हजार रुपये तक की कोल्हापुरी चप्पलें बनवाई जा सकती हैं.

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पढ़ा-लिखा बेटा भी करता है मदद
बालासाहेब वाघमारे का बेटा रविराज वाघमारे उच्च शिक्षित है. एमएससी की पढ़ाई करने के बाद भी रविराज ने नौकरी के पीछे न भागकर पारंपरिक बिजनेस में कदम रखा है. वह अपने पिता को कोल्हापुरी चप्पलें बनाने के काम में मदद करता है. कोल्हापुरी चप्पलों की बड़ी मांग है और इस पारंपरिक व्यवसाय को और बड़ा करने का सपना है.

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