होली में भांग की एंट्री कैसे हुई? मथुरा हो या वाराणसी, बिना इसके नहीं मनता त्योहार, यह है पूरी कहानी

मान्‍यता है कि समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत की एक बूंद मंदार पर्वत पर गिरी थी और उस बूंद भांग का पौधा जन्‍मा था. Image Credit source: Getty Images

होली हो और रंग-गुलाल के साथ ही गुझिया और ठंडाई की चर्चा न हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है. सर्दी और गर्मी के बीच के संक्रमण काल में ठंडाई का सेवन बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक माना जाता है. होली का समय ऐसे ही संक्रमण का समय होता और इस दौरान पी जाने वाली ठंडाई में थोड़ी सी भांग उत्साह और मस्ती को और भी बढ़ा देती है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि होली में भांग की एंट्री कैसे हुई और यह त्योहार का हिस्सा कैसे बनी?

होली में भांग के सेवन की परंपरा खासकर उत्तर भारत के बनारस (वाराणसी), मथुरा-वृंदावन और कानपुर आदि शहरों में ज्यादा पाई जाती है. ठंडाई, लस्सी और मिठाइयों के साथ ही कई अन्य खाद्य पदार्थों में मिलाकर इसे त्योहार का हिस्सा बना लिया जाता है. इसके सेवन से लोग मस्ती में लोग हंसी-मजाक करते हैं.

शिव के गृहस्थ जीवन में लौटने पर मना था उत्सव

भांग के सेवन को लेकर कई कथाएं और किंवदंतियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एक बार भगवान भोलेनाथ वैराग्य के चलते ध्यान में लीन थे. उधर माता पार्वती चाहती थीं कि शिवशंकर तपस्या छोड़कर दांपत्य जीवन में आ जाएं. उनके कहने पर कामदेव ने फूलों का एक तीर भोलेनाथ पर छोड़ दिया, जिससे उनकी तपस्या भंग हुई और उनके गृहस्थ जीवन में वापस आने पर उत्सव मनाया गया और इस उत्सव में मस्ती के लिए भांग का इस्तेमाल किया गया था.

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नरसिम्हा को शांत करने के लिए शरभ अवतार

एक कथा यह भी मिलती है कि भक्त प्रह्लाद की रक्षा और उसके पिता हिरण्यकश्यप का संहार करने के लिए भगवान नारायण ने नरसिम्हा का अवतार लिया था. हिरण्यकश्यप को मारने के बाद नारायण काफी क्रोधित थे. शिव शंकर ने उनको शांत करने के लिए शरभ अवतार लिया. इसमें शिव ने आधे शेर और आधे पक्षी का शरीर धारण किया था. इसी दौरान मस्ती के लिए शिव ने नारायण के साथ भांग का सेवन किया था.

समुद्र मंथन से निकले अमृत से उगा पौधा

इसके अलावा धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत की एक बूंद मंदार पर्वत पर गिरी थी. उस बूंद से उगा पौधा ही औषधीय गुणों वाली भांग का पौधा कहा जाता है. यह भी माना जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने के बाद जलन शांत करने के लिए शिवशंकर ने भांग का सेवन किया था.

इसीलिए दूध में बादाम-पिस्ता और काली मिर्च संग थोड़ी सी भांग पीसकर मिलाकर बनने वाली ठंडाई काफी लो​कप्रिय है. इसके सेवन से थोड़ी देर के लिए लोग मस्ती में चूर हो जाते हैं. फिर होली भी मस्ती का त्योहार है. इसलिए शिव के प्रसाद के रूप में इसमें भांग का इस्तेमाल किया जाता है.

सीमित मात्रा सेहत के लिए फायदेमंद

माना जाता है कि भांग के सीमित सेवन से कुछ स्वास्थ्य लाभ भी होता है. इसके सेवन से तनाव और चिंता दूर होती है और खुशी महसूस होती है. इसलिए तनाव से मुक्ति के लिए देश भर में अलग-अलग तरीके से भांग का सेवन किया जाता है.

दरअसल, भांग के इस्तेमाल से मस्तिष्क में डोपामिन और सेरोटोनिन हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है. इससे मूड अच्छा होता है, साथ ही तनाव कम होता है. भांग में मौजूद कुछ तत्वों को सिर दर्द कम करने में भी सहायक माना जाता है. इससे अनिद्रा की समस्या से जूझते लोगों को आराम मिलने की बात भी कही जाती है.

नुकसान भी कम नहीं

एक ओर जहां भांग के सेवन के कुछ लाभ बताए जाते हैं, तो इसके अधिक सेवन से नुकसान भी होता है. भांग के अधिक सेवन से सिर में दर्द, मतिभ्रम, उल्टी और बेचैनी आदि हो सकती हैं. इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि भांग का सेवन हमेशा सीमित मात्रा में सावधानीपूर्वक ही करना चाहिए. वरना होली के रंग में भंग कहावत चरितार्थ हो सकती है.

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