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Thane Kaupineshwar Temple: ठाणे का कौपीनेश्वर मंदिर 1100 वर्ष पुराना शिव मंदिर है, जहां विशाल शिवलिंग हर साल बढ़ता है. ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण यह मंदिर महाशिवरात्रि पर विशेष आकर्षण बनता है.

1100 साल पुराना यह मंदिर, हर साल बढ़ता है शिवलिंग का साइज! जानिए रहस्य

ठाणे कौपीनेश्वर मंदिर

महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित श्री कौपीनेश्वर मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका इतिहास भी लगभग 1100 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार 18वीं शताब्दी में हुआ था, जिससे इसकी भव्यता और आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ गया. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें ठाणे का कुलदेवता माना जाता है. यह स्थान पूरे राज्य के भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहां हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

शिवलिंग की अनोखी मान्यता
कौपीनेश्वर मंदिर का शिवलिंग महाराष्ट्र के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक माना जाता है. इसका व्यास और ऊंचाई दोनों पांच फीट के बराबर हैं. किंवदंतियों के अनुसार, यह शिवलिंग हर वर्ष थोड़ा-थोड़ा बढ़ता रहता है. मान्यता यह भी है कि जिस दिन यह शिवलिंग मंदिर की छत को छू लेगा, उस दिन यह मंदिर नष्ट हो जाएगा. यह रहस्य और मान्यता भक्तों की आस्था को और मजबूत बनाते हैं और उन्हें यहां खींच लाते हैं.

मंदिर की अद्भुत वास्तुकला
मंदिर की संरचना और इसकी प्राचीन लाल छत की टाइलें इसे एक विशिष्ट पहचान देती हैं. इसके साथ ही लकड़ी की नक्काशी भक्तों का ध्यान आकर्षित करती है. यह मंदिर ठाणे स्टेशन रोड के वरदाली इलाके में स्थित है. मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही भक्तों को एक दिव्य और शांत वातावरण का अनुभव होता है, जो उनके मन को शांति और सुकून प्रदान करता है.

त्योहारों के दौरान भव्य आयोजन
कौपीनेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि, नवरात्रि, हनुमान जयंती, राम नवमी और दत्त जयंती जैसे प्रमुख त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं. इन अवसरों पर मंदिर में विशेष पूजन और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से भक्तगण शामिल होते हैं. खासकर महाशिवरात्रि के दिन यहां भारी भीड़ उमड़ती है और भक्त भगवान शिव के दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं.

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित विशाल नंदी भगवान शिव के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है. कहा जाता है कि 1240 ईस्वी में शिल्हारा राजवंश के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और उन्होंने अपने शासनकाल में इस मंदिर की स्थापना करवाई. 1760 में सरसुभेदार रामजी महादेव बिवलकर ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, जबकि 1879 में हिंदू समुदाय द्वारा इसे फिर से विकसित किया गया. इसके बाद 1996 में मंदिर परिसर का एक और नवीनीकरण किया गया, जिससे इसकी भव्यता और आकर्षण बरकरार रहा.

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