जयपुर: भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो राजस्थान बीते कुछ वर्षों में बड़ी तेजी से कार्य कर रही है। मुख्यालय के अधीन प्रदेश के सभी जिलों में एसीबी की विंग खुली हुई है और आए दिन ट्रेप की कार्रवाइयों को अंजाम दिया जाता है। भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के साथ जनप्रतिनिधियों को भी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार करके जेल में डाला जाता है। जब एसीबी की कार्रवाई होती है तो भ्रष्ट अफसरों कर्मचारियों की बड़ी बड़ी तस्वीरें प्रकाशित होती है और एसीबी अपनी पीठ भी थपथपाती है लेकिन दूसरी ओर भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ होने वाली अग्रिम कार्रवाई पर नजर डाले तो सिस्टम की खामी और एसीबी कार्रवाई की पोल खुल रही है। कमजोर पैरवी या अनुसंधान की कमी, अधिकतर मामलों में भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी बरी हो रहे हैं। भले ही एसीबी रंगे हाथों ट्रेप करती हो लेकिन कोर्ट में रिश्वत लेना साबित नहीं कर पा रही है।

गत वर्ष 70 फीसदी रिश्वतखोर बरी

हाल ही में राजस्थान विधानसभा में पेश की गई अभियोजन निदेशालय की रिपोर्ट से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि एसीबी द्वारा की गई कार्रवाई में कोर्ट में सुनवाई के दौरान वर्ष 2024 में 70 फीसदी मामलों में अफसर और कर्मचारी बरी हो गए। केवल 30 फीसदी भ्रष्ट अफसरों कर्मचारियों को ही सजा मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में भ्रष्टाचार के कुल 3930 मामले एसीबी के न्यायालयों में विचाराधीन थे। इनमें से 331 मामलों का निस्तारण किया गया। निस्तारित किए गए मामलों में 70.1 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो गए जबकि 29.9 प्रतिशत आरोपियों को सजा हुई। वर्ष 2023 में कुल 4082 मामलों की सुनवाई हुई, जिनमें 338 मामलों का निस्तारण हुआ। इनमें से 60.6 फीसदी मामलों में आरोपी बरी हुए जबकि केवल 39.4 प्रतिशत आरोपियों को सजा हुई। इससे पहले सजा का प्रतिशत ज्यादा था। वर्ष 2022 में कुल 3955 मामलों की सुनवाई हुई जिनमें 266 मामलों का निस्तारण हुआ। इनमें से 52.70 प्रतिशत प्रकरणों में आरोपियों को सजा मिली जबकि 47.30 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हुए।

जांच में खामियों की वजह से नहीं दिलाई जा सकी सजा

एसीबी की टीमें लगातार ट्रेप की कार्रवाइयां तो कर रही है लेकिन अनुसंधान में कई तरह की कमियां छोड़ दी जाती है। ऐसे में भ्रष्ट अधिकारी या कर्मचारी को बचने का रास्ता मिल जाता है। रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने वाले अफसर और कर्मचारी बरी होकर फिर से नौकरी में आ जाते हैं। राजस्थान में ऐसे आईपीएस आरपीएस अफसर भी हैं जो रिश्वत लेने के मामले में लंबे समय तक जेल में रहे और अब बहाल होकर जिला एसपी, एडिशनल एसपी और डिप्टी एसपी बने हुए हैं। कुछ आईएएस अधिकारी भी हैं जो भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार होकर जेल में रहे लेकिन वर्तमान में बड़े मलाईदार पदों पर नौकरी कर रहे हैं।

सरकार नहीं देती केस चलाने की अनुमति

आईएएस और आईपीएस के मामलों में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती है। भ्रष्टाचार के मामले में पकड़े जाने और जेल जाने के बाद भी केस चलाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों पर केस चलाने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। राज्य सरकार ऐसे मामलों में ढिलाई दिखाती है। ऐसे में बड़े अफसरों के खिलाफ केस नहीं चल पाता। राजस्थान में ऐसे दर्जनों प्रकरण हैं जो बड़े अफसरों से जुड़े हुए हैं जिनमें राज्य सरकार ने उन भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति तक नहीं दी गई। पिछले दिनों भाजपा विधायक कालीचरण सराफ ने सदन में इस मुद्दे को भी उठाया लेकिन सरकार की ओर से केवल आश्वासन दिया गया। राजस्थान में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की। दोनों की सरकारों के कार्यकाल में एक जैसे ही हाल देखने को मिले हैं।

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