संदीप तिवारी, लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में आरोपियों के खिलाफ आरोपों में संशोधन करते हुए आरोपों को नए दृष्टिकोण से देखा है। बुधवार को न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने यूपी में कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र से जुड़े एक मामले में स्पष्ट किया कि पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अंतर्गत नहीं आता है। वहीं स्पष्ट किया कि ये गंभीर यौन हमला है। बता दें कि इससे पहले आरोपियों के खिलाफ धारा 376 आईपीसी (बलात्कार) और पाक्सो अधिनियम की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास का आरोप नहीं बनता है। न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों और मामले के तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करना कि बलात्कार का प्रयास हुआ, संभव नहीं था। इसके लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना पड़ता कि आरोपियों की कार्रवाई अपराध करने की तैयारी से आगे बढ़ चुकी थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बलात्कार के प्रयास और अपराध की तैयारी के बीच अंतर को सही तरीके से समझना चाहिए।

हाइकोर्ट ने निचली अदालत को दिया निर्देश

हाईकोर्ट ने इस दलील पर विचार करते हुए पाया कि आरोपियों के खिलाफ बलात्कार के प्रयास का आरोप नहीं बनता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (बी) (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पाक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मामूली आरोपों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने समन आदेश को संशोधित करते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह आरोपियों के खिलाफ संशोधित धाराओं के तहत नया समन आदेश जारी करे। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि आरोपियों ने बलात्कार करने का इरादा किया था।

कासगंज के पटियाली का है मामला

बता दें कि यह मामला कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र का है जहां पर पवन और आकाश ने 11 वर्षीय पीड़िता के साथ कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की। इस दौरान आकाश ने पीड़िता के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया। हालांकि, राहगीरों के हस्तक्षेप से आरोपियों को मौके से भागना पड़ा।

ट्रायल कोर्ट ने इसे पाक्सो एक्ट के तहत बलात्कार के प्रयास और यौन उत्पीड़न का मामला मानते हुए समन आदेश जारी किया था। हालांकि, आरोपियों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, जिसमें यह तर्क दिया गया कि शिकायत के आधार पर यह मामला धारा 376 आईपीसी (बलात्कार) के तहत नहीं आता और यह केवल धारा 354 (बी) आईपीसी और पाक्सो अधिनियम के तहत ही आ सकता है।

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