Bihar Cabinet Expansion List: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कैबिनेट विस्तार में उनकी अपनी पार्टी जेडीयू के किसी भी नेता को मंत्री पद नहीं मिला. आज बीजेपी के सात नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली. तो क्या इस चुनावी साल में सात के सात मंत्री पद और वो भी एक साथ बीजेपी को देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना बड़ा दिल दिखाया है या फिर नीतीश कुमार की कोई सियासी मजबूरी है, जिसके तहत उनकी बीजेपी की हर बात मानना जरूरी है?

सात नए मंत्रियों की शपथ के साथ ही सरकार में बीजेपी कोटे के मंत्रियों की संख्या 21 हो चुकी है. अब ये जो नए सात मंत्री बने हैं, उनकी जाति क्या है, उनका राजनीतिक दख़ल कितना है, कोई महिला मंत्री क्यों नहीं बनी, सीमांचल से कौन, मिथिलांचल से कौन और क्यों, इन सबका जवाब बीजेपी ने अपने तईं खोजकर ही मंत्रिमंडल विस्तार किया होगा. लेकिन सवाल है कि नीतीश कुमार इतनी राजी-खुशी कैसे मान गए कि मंत्रिमंडल विस्तार में उनकी पार्टी का एक भी मंत्री नहीं होगा और खाली पड़ी 6 सीटों के साथ ही दिलीप जायसवाल के इस्तीफे से खाली हुई सातवीं सीट भी बीजेपी के ही कोटे में जाएगी.

कैसे मान गए नीतीश कुमार?

इसका पहला जवाब तो यही है कि नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच कोटे का बंटवारा. जिसके जितने विधायक उसके हिसाब से उस पार्टी के मंत्री और इस लिहाज़ से बीजेपी के विधायक ज्यादा हैं तो सरकार में उसके मंत्री भी ज्यादा होंगे. लेकिन फिर सवाल है कि अगर नीतीश नहीं मानते तो क्या होता. क्योंकि मंत्रिमंडल विस्तार तो एक साल से प्रस्तावित था, लेकिन वो नहीं हो पा रहा था. तो आख़िर पहले पीएम मोदी की रैली और फिर जेपी नड्डा की पटना यात्रा में ऐसा क्या हो गया कि नीतीश मान गए.

इसका जवाब है पीएम मोदी का वो भाषण, जिसमें पीएम मोदी ने नीतीश को लाडला सीएम बताकर चुनाव की टोन सेट कर दी और ज़ाहिर कर दिया कि मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही होंगे. अब कहने को ये इशारा भर था, लेकिन शायद नीतीश कुमार ने इसी को आश्वासन समझ लिया हो कि बीजेपी ने बड़े भाई की भूमिका दे दी है तो अब उन्हें भी बड़ा दिल दिखाना ही पड़ेगा, वरना नतीजे कुछ और हो सकते हैं. तो जेपी नड्डा से मिलने के बाद नीतीश मान गए और अब जब शपथ ग्रहण हो गया है, तो वो सभी को बधाई भी दे रहे हैं.

नीतीश कुमार के पास नहीं है ऑप्शन?

सवाल अब भी है कि क्या नीतीश का यूं ही मान जाना और खाली पड़े सभी मंत्रीपद बीजेपी को दे देना इतना आसान रहा है, जितना ऊपरी तौर पर दिख रहा है? इसका जवाब नीतीश कुमार की मजबूरी के तौर पर भी सामने आ रहा है, क्योंकि अगर नीतीश नहीं मानते तो भी बीजेपी उन्हें बात मानने को मजबूर करती. क्योंकि बीजेपी भले ही अकेले बिहार का चुनाव लड़ने में सक्षम हो, नीतीश कुमार नहीं हैं. वो अकेले सरकार का खेल बिगाड़ तो सकते हैं, लेकिन अपना काम बना भी नहीं सकते हैं. ऐसे में उनके पास दो ही विकल्प हैं कि या तो वो बीजेपी के साथ रहें और बीजेपी की हर बात मानते रहें या फिर वो महागठबंधन का हिस्सा बन जाएं.

महागठबंधन का हिस्सा बनने से अब नीतीश को हिचक हो रही होगी, क्योंकि वो कई बार पाला बदल चुके हैं और जितनी भी बार वो पाला बदलते हैं, वो ख़ुद को कमजोर कर लेते हैं. ऐसे में चुनावी साल में पाला बदलना उनकी राजनीतिक साख को और भी ज्यादा नुक़सान पहुंचा सकता है और जिस वक्त में नीतीश कुमार के बेटे निशांत लगातार राजनीतिक बयानबाजी करके सुर्खियां बटोर रहे हैं, ऐसे वक्त में नीतीश को अपनी राजनीतिक साख की चिंता तो होगी ही होगी ताकि वक्त आने पर बेटे की राजनीति में सॉफ्ट लॉन्चिंग हो सके.

क्या हैं संभावनाएं?

बाकी तो वो नीतीश कुमार हैं. उनके मन में क्या चल रहा है, वो उनके अलावा और कोई नहीं बता सकता है. होने को तो ये भी हो सकता है कि नीतीश ने बीजेपी की हर बात मान ली हो चाहे वो केंद्र में समर्थन की बात हो या फिर बिहार में मंत्री बनाने की तो मौका आने पर नीतीश कुमार इन्हीं बातों का हवाला देकर अपनी भी कोई बात मनवा लें. और ये बात ये भी हो सकती है कि वो वाया बीजेपी चिराग पासवान को इस बात के लिए राजी कर लें कि नीतीश कुमार की पार्टी के खिलाफ चिराग अब इस बार कोई उम्मीदवार न उतार दें.

होने को ये भी हो सकता है कि जब बात कोटे की आएगी तो नीतीश कुमार टिकट बंटवारे के वक्त भी इसी कोटे का जिक्र करें और ये कह दें कि जेडीयू का कोई साझीदार नहीं है और बाकी चिराग़ पासवान से लेकर, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और दूसरे लोग बीजेपी के साथ हैं तो टिकट भी बीजेपी अपने कोटे से ही दे. इसलिए होने न होने की बात अभी छोड़ देते हैं, तेल देखते हैं, तेल की धार देखते हैं और इंतजार करते हैं नीतीश कुमार की अगली सियासी चाल का.

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