Chhath Puja 2024: सबसे पहले कहां और किसने किया था छठ?

प्राचीन मंदिर

Chhath Puja 2024: लोक आस्था के महापर्व छठ की मुंगेर में खास अहमियत है. इस पर्व को लेकर यहां कई लोककथाएं प्रचलित हैं. उनमें से एक कथा के अनुसार सीता माता ने यहां छठ व्रत कर इस पर्व की शुरुआत की थी. आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर जिले के बबुआ गंगा घाट से दो किलोमीटर दूर गंगा के बीच में स्थित पर्वत पर ऋषि मुदगल के आश्रम में मां सीता ने छठ किया था. माता सीता ने जहां पर छठ किया था. वह स्थान वर्तमान में सीता चरण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, तब से अंग और मिथिला समेत पूरे देश मे छठ व्रत मनाया जाने लगा.

वहीं छठ पर्व को लेकर धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं भी हैं कि रामायण काल में मुंगेर की गंगा नदी के तट पर मां सीता ने पहली बार छठ व्रत किया था. इसके बाद से छठ व्रत मनाया जाने लगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां सीता ने सबसे पहले मुंगेर में उत्तरवाहिनी गंगा घाट पर छठ व्रत किया था, जिस स्थान पर मां सीता ने छठ पूजा की थी. बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर दियारा इलाके में स्थित मंदिर में माता का चरण पदचिह्न और सूप का निशान एक विशाल पत्थर पर अभी भी मौजूद है.

माता सीता ने 6 दिनों तक छठ पूजा की

वह पत्थर 250 मीटर लंबा 30 मीटर चौड़ा है. यहां पर एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है, जिसे अभी लोग सीता चरण मंदिर के नाम से जानते हैं. वही धर्म के जानकार पंडित का कहना है कि ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने 6 दिनों तक रहकर छठ पूजा की थी, जब भगवान राम 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे, तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया था. क्योंकि रावण ब्राह्मण कुल से आते थे और इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर राजा राम ने राजसूय यज्ञ कराने का फैसला किया.

सूरज की उपासना करने की सलाह

इसके बाद मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया गया था लेकिन मुद्गल ऋषि ने अयोध्या आने से पहले भगवान राम और सीता माता को अपने आश्रम बुलाया और भगवान राम को मुंगेर में ही ब्रह्म हत्या मुक्ति यज्ञ करवाया. क्योंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थीं. इसलिए माता सीता को मुदगल ऋषि ने आश्रम में ही रहने का निर्देश दिया और उन्हें सूरज की उपासना करने की सलाह दी.

दूर-दूर से छठ के लिए आते हैं लोग

मां सीता के मुंगेर में छठ व्रत करने का जिक्र आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 में भी है, जहां मां सीता ने व्रत किया वहां माता सीता के दोनों चरणों के निशान मौजूद हैं. इसके अलावा शीला पाठ सूप, डाला और लोटा के निशान हैं. मंदिर का गर्भगृह साल में 6 महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है. यह मंदिर 1974 में बनकर तैयार हुआ था, जहां दूर-दूर से लोग छठ व्रत करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि छठ व्रत करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

रिपोर्ट- सुनील कुमार गुप्ता

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