सुप्रीम कोर्ट के उच्च सूत्रों ने इस बात से इनकार किया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ ‘इन हाउस इन्क्वायरी’ शुरू कर दी गई है. एबीपी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक अभी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम मामले से जुड़ी जानकारियों को जुटाने में लगी है. इसके बाद आगे के कदम को लेकर फैसला लिया जाएगा.
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश की है. हालांकि, यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अभी तक अपलोड नहीं हुई है, लेकिन मामले की जानकारी रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के एक उच्च अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है. बताया जा रहा है कि जस्टिस वर्मा के घर पर आग लगने के दौरान बड़ी मात्रा में कैश मिला. इसे गंभीरता से लेते हुए कॉलेजियम ने उनके ट्रांसफर की सिफारिश की है.
क्यों हुआ ट्रांसफर?
सुप्रीम कोर्ट के उच्च सूत्रों ने बताया है कि ट्रांसफर एक शुरुआती कदम है. न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए इसे ज़रूरी समझा गया. यह कदम इसलिए भी उठाया गया क्योंकि जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में वरिष्ठता क्रम में तीसरे नंबर पर हैं. इस नाते वह हाई कोर्ट की कॉलेजियम के सदस्य हैं. उनके यहां बने रहने से हाई कोर्ट कॉलेजियम के कामकाज पर फर्क पड़ सकता था.
आगे की कार्रवाई पर होगा विचार
मामले के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और 4 वरिष्ठतम जजों ने बाकी जजों से चर्चा की. सबने कॉलेजियम की तरफ से उठाए गए किसी भी कदम को समर्थन देने की बात कही है. फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से जानकारी मांगने समेत दूसरे कदम उठाए जा रहे हैं. इस प्राथमिक जांच के बाद आगे की कार्रवाई पर विचार होगा.
क्या होती है ‘इन हाउस इन्क्वायरी’?
सुप्रीम कोर्ट के उच्च सूत्रों ने इस बात का खंडन किया है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ ‘इन हाउस इन्क्वायरी’ शुरू हो चुकी है. सूत्रों ने बताया है अभी जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांगने या उनके खिलाफ ‘इन हाउस इन्क्वायरी’ कमेटी के गठन पर कोई फैसला नहीं हुआ है. ‘इन हाउस इन्क्वायरी’ कमेटी जज को पद से हटाने की प्रक्रिया का पहला चरण होती है. इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज और 2 हाई कोर्ट चीफ जस्टिस होते हैं. अगर वह जांच में जज को दोषी पाते हैं तो इसकी रिपोर्ट संसद को भेज दी जाती है. इसके बाद संसद में जज को पद से हटाने का प्रस्ताव लाया जाता है.
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