जकार्ता: एलब्रिज कोल्बी को अगर अमेरिका की रक्षा नीति का अवर सचिव बनाने के लिए सीनेट की मंजूरी मिल जाती है तो तय हो जाएगा, कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की असल चिंता रूस नहीं, बल्कि चीन है। एलब्रिज कोल्बी वो अधिकारी हैं जो चीन को लेकर सबसे ज्यादा आक्रामक रहे हैं। एलब्रिज कोल्बी लगातार कहते आए हैं कि अमेरिका को यूरोप से अपना ध्यान हटाकर चीन और इंडो-पैसिफिक की तरफ करना चाहिए। एलब्रिज कोल्बी का मानना है कि इंडो-पैसिफिक में चीनी वर्चस्व अमेरिका के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक स्थिति है और वो अमेरिका की सुरक्षा, स्वतंत्रता और समृद्धि को खत्म कर सकता है। लेकिन एलब्रिज कोल्बी की ताइवान नीति की विरोध होती रही है और सीनेट में रिपब्लिकन सीनेटरों ने ही उनसे ताइवान पर असहज करने वाले सवाल पूछे हैं।सीनेटर कॉटन ने उनसे पूछा कि “पिछले कुछ सालों में आपने कहा है कि ताइवान एक महत्वपूर्ण हित है, लेकिन यह हमारे लिए अस्तित्व का सवाल नहीं है। यह हमारे लिए जरूरी नहीं है। क्या आप हमें बता सकते हैं कि ताइवान की रक्षा के बारे में आप कुछ हद तक नरम क्यों पड़ गए हैं?” जिसपर कोब्ली ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि ताइवान संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए “बहुत महत्वपूर्ण” है, लेकिन उन्होंने तर्क दिया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच “सैन्य संतुलन” में बदलाव को देखते हुए यह “अस्तित्वगत हित नहीं है।”

एलब्रिज कोल्बी की चीन को लेकर सोच क्या है?
एलब्रिज कोल्बी ने सीनेटर से कहा कि “सीनेटर, जो बदला है वह है सैन्य संतुलन में नाटकीय गिरावट। एक निरर्थक और अत्यधिक खर्चीले प्रयास में शामिल होना हमारी सेना को नष्ट कर देगा।” उन्होंने जोर देकर कहा, कि चीन के अपने प्रभाव क्षेत्र में उसका मुकाबला करने के लिए “हमारी ओर से तैयारी की कमी” है। कोल्बी ने तर्क दिया कि ताइवान का डिफेंस खर्च, उसके सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत से भी कम है और इसे बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने की जरूरत है। उनके मुताबिक ताइवान अपनी सुरक्षा मजबूत करने में कमजोर कोशिश कर रहा है। आपको बता दें कि ताइवान के राष्ट्रपति विलियम लाइ ने पिछले महीने सैन्य खर्च को इस साल के 2.45 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी के 3 प्रतिशत तक बढ़ाने का वादा किया था, जिसका मकसद डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन को अपनी रक्षा प्रतिब्धता दिखाना था। लेकिन ताइवान की संसद ने रक्षा बजट को बढ़ाने वाली फाइल अभी तक रोक रखी है।

चीन को हराने का इंडोनेशियाई मॉडल क्या है?
अमेरिकी मरीन कॉर्प्स के लेफ्टिनेंट कर्नल जोएल एन. री ने एक लेख में सुझाव दिया है कि चीन को मात देने के लिए इंडोनेशियाई मॉडल को फॉलो किया जा सकता है। री ने बताया है कि कैसे 1970 के दशक से चीन ने पीपुल्स आर्म्ड फोर्सेज मैरीटाइम मिलिशिया (PAFMM), चाइना कोस्ट गार्ड और सबसे बाहरी परत, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) का इस्तेमाल करके “गोभी रणनीति” का इस्तेमाल किया था, ताकि पड़ोसी राज्यों से संप्रभु क्षेत्र को जब्त किया जा सके। अमेरिकी रणनीतिक चीन की समुद्री स्ट्रैटजी को 6 श्रृंखला में बांटते हैं। “पहली द्वीप श्रृंखला” कुरील, जापानी घरेलू द्वीपों और रयूकस से ताइवान, फिलीपींस और इंडोनेशिया तक फैले द्वीपों को समेटती है। “दूसरी श्रृंखला” जापान से मारियानास और माइक्रोनेशिया तक फैली हुई है और “तीसरी श्रृंखला” हवाई पर केंद्रित है।

चौथी द्वीप श्रृंखला” हिंद महासागर के मध्य से होकर गुजरती है, जो पाकिस्तान के ग्वादर और श्रीलंका के हंबनटोटा के साथ भारत को चुनौती देने की चीन की क्षमता को दर्शाती है। जबकि “पांचवीं द्वीप श्रृंखला” को अफ्रीका और उससे आगे के क्षेत्रों में चीनी हितों को कवर करने के लिए जिबूती के दोरालेह में चीन के बेस से निकलने के रूप में दिखाया जाता है। कोल्बी की तरह री का भी मानना है कि अगर पहली श्रृंखला के भीतर चीनी डिजाइन का जोरदार विरोध किया गया को इसका असर बाकी श्रृंखलाओं पर भी होगा। उनके मुताबिक इंडोनेशिया ने अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में अवैध रूप से मछली पकड़ने वाली चीनी नौकाओं के खिलाफ अभियान चलाा है और चीन को काउंटर करने का ये एक सही तरीका हो सकता है।

चीन को कैसे काउंटर किया जा सकता है?
लेफ्टिनेंट कर्नल जोएल एन. री का मानना है कि अमेरिका को अपने एशियाई समुद्री सहयोगियों के साथ मिलकर चीन के उन मछली नौकाओं को पकड़ना और नष्ट करना चाहिए जो EEZ में घुसने की गुस्ताखी करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर चीनी नावें अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और मानदंडों का उल्लंघन करे तो उन्हें नष्ट करना भविष्य में क्षेत्रीय कब्जों के खिलाफ एक मिशन की तरफ काम कर सकता है। इस तरह की आक्रामकता से चीन के विस्तार को रोका जा सकता है। री का कहना है की चीन को किसी और के क्षेत्र में मछली पकड़ने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।

जकार्ता के पास “इंडोनेशियाई प्रोटोकॉल” है, जिसके तहत इंडोनेशियाई नौसेना अवैध रूप से अपने जलक्षेत्र में आने वाली नौकाओं को पकड़ती हैं। और फिर जहाज को जब्त कर लेती है। और इंडोनेशियाई कोर्ट का फैसला आने के बाद ऐसे जहाजों को नष्ट कर दिया जाता है। लिहाजा चीनी खतरे का सामना करने वाले दूसरे देश भी ऐसा कानून बना सकते हैं।

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