महाकुंभ जिसे भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन कहा जाता है, 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज के संगम तट पर हुआ. 45 दिनों तक चले इस आयोजन में लगभग 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में पवित्र स्नान किया, जिससे यह न केवल एक धार्मिक बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आयोजन भी बन गया.
सरकार ने इस महाकुंभ को 124 सालों में एक बार होने वाला विशेष आयोजन बताया और इसके प्रचार-प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन प्रशासनिक तैयारियों की पोल श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ और अव्यवस्थाओं ने खोलकर रख दी. कई श्रद्धालुओं ने साफसफाई ट्रांसपोर्टेशन और रहने ठहरने के जगह की कमी की शिकायतें कीं. वहीं, भगदड़ जैसी दर्दनाक घटनाओं ने इस धार्मिक मेले को झकझोर कर रख दिया.
महाकुंभ के दौरान दो अलग-अलग स्थानों पर भगदड़ मचने की खबरें आईं. पहली घटना 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन संगम क्षेत्र में हुई, जिसमें प्रशासन के मुताबिक 30 लोगों की मौत हुई और 60 से ज्यादा घायल हुए. हालांकि, प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था की मरने वालों की संख्या इससे ज़्यादा थी.
दूसरी घटना नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (NDLS) पर घटी, जब प्रयागराज से लौट रहे श्रद्धालुओं की भारी भीड़ प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा हो गई और धक्का-मुक्की के चलते कई लोग कुचलकर मर गए और घायल हो गए. प्रयागराज के संगम पर हुई घटना पर यूपी पुलिस के DGP ने बयान दिया कि भगदड़ की खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है, जबकि प्रत्यक्षदर्शी श्रद्धालुओं और विपक्षी दलों ने इसे प्रशासन की नाकामी बताया.
इस महाकुंभ में तीन लोग सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चित रहे – ‘मोनालिसा’ और आईटी बाबा’ और ममता कुलकर्णी. महाकुम्भ में माला बेचते अपने खूबसूरत आँखों और हंसी के कारण मोना लिसा डिजिटल मीडिया के आकर्षण का केंद्र बन गई, यूट्यूब ब्लॉगर उसके पीछे इतनी बुरी तरह से पड़े की वो परेशां हो गई और उसके पिता ने उसे वापिस घर भेज दिया.
आईटी बाबा अपने बयानों को लेकर काफी सुर्खिया बटोरी बाद में वो जिस अखाड़े से जुड़े थे उसने उन्हें बाहर कर दिया. वहीं फ़िल्मी अदाकारा ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाडा ने महामंडेश्वर की उपदि दी, इसे लेकर किन्नर अखाडा में आपसी विवाद इतना बढ़ा की ममता ने महामंडेश्वर के पद से इस्तीफा दे दिया.
कई साधुओं ने महाकुंभ की आस्था और विविधता को अनोखे अंदाज में पेश किया और लोगों के आकर्षण का केंद्र बने. प्रयागराज में मुस्लिम समुदाय ने धार्मिक सौहार्द की मिसाल पेश की. स्थानीय लोगों ने अपने घरों, मस्जिदों और मदरसों में श्रद्धालुओं के लिए रहने और खाने-पीने की व्यवस्था की.
मुस्लिम युवकों ने रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर श्रद्धालुओं की मदद की, वहीं कई मोहल्लों में मस्जिदों में यात्रियों के लिए कंबल और भोजन की व्यवस्था की गई. इस पहल ने धार्मिक मेल-मिलाप का खूबसूरत उदाहरण पेश किया.
महाकुंभ 2025 में न सिर्फ आम श्रद्धालु बल्कि कई मशहूर हस्तियाँ भी शामिल हुईं:
उद्योगपति गौतम अडानी और ईशा अंबानी
फिल्मी दुनिया से हेमा मालिनी और रवीना टंडन
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह
योग गुरु बाबा रामदेव और भी कई नामचीन हस्तिओं ने संगम में डुबकी लगाई और टीवी चैनल्स,डिजिटल मीडिया और अख़बारों में सुर्खियां बटोरी. इन हस्तियों ने अपने अनुभव सोशल मीडिया पर साझा किए, जिससे महाकुंभ को और अधिक लोकप्रियता मिली. महाकुंभ की अव्यवस्थाओं को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बयानबाजी भी देखने को मिली.
विपक्षी दलों ने भगदड़ और अव्यवस्थाओं के लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया. इसके जवाब में सीएम योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा: “गिद्धों को लाश, सूअरों को गंदगी… महाकुंभ में जिसने जो तलाशा, उसको वो मिला.”
उनका यह बयान उन लोगों के लिए था जो प्रशासनिक नाकामी के मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर थे.हालांकि एक राजनेता,मुख्यमंत्री को बोलते समय अपने भाषा के मर्यादा में सयम बरतना चाहिए. वहीं, कई साधु-संतों ने भी अव्यवस्थाओं पर नाराजगी जताई साथ ही आम लोगों ने रेलवे में रिज़र्व टिकट होने के बावजूद सीटें न मिलने की शिकायतें की .
महाकुंभ 2025 में कई अनोखे रिकॉर्ड भी बने
विश्व का ये सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन था, 66 करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने इस पवित्र स्नान में भागीदारी की. सबसे लंबी हाथ से बनी चित्रकला भी लोगों के आक्रषण का केंद्र बनी और गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हो गई . सबसे बड़ा सामूहिक स्वच्छता अभियान भी देखने को मिला साथ ही सबसे बड़ा नदी सफाई अभियान भी चलाया गया.
भारत की सांस्कृतिक विरासत का वैश्विक प्रदर्शन हुआ, साथ ही विदेशी पर्यटकों और मीडिया की भारी संख्या में भागीदारी दर्ज की गई. महाकुंभ 2025 ने एक बार फिर साबित किया कि यह न केवल भारत बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला था. श्रद्धालुओं की अभूतपूर्व संख्या ने इसे ऐतिहासिक बना दिया, लेकिन अव्यवस्थाओं और भगदड़ जैसी घटनाओं ने इसकी चमक को कुछ हद तक फीका कर दिया.
इस महाकुंभ ने जहां श्रद्धा और समर्पण की अनूठी तस्वीर पेश की, वहीं प्रशासन के लिए एक सबक भी छोड़ दिया कि भविष्य में बेहतर योजना, भीड़ नियंत्रण और संसाधनों के और बेहतर इंतेज़ाम की ज़रूरत है. महाकुंभ 2025 आस्था, संघर्ष, और सामाजिक समरसता का प्रतीक बनकर इतिहास में दर्ज हो गया.
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