नई दिल्‍ली: भारत का मिडिल क्‍लास आर्थिक दबाव में है। पिछले 10 सालों से उसकी आमदनी रुकी हुई है, जबकि खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। मार्सेलस के संस्थापक और चीफ इन्‍वेस्‍टमेंट ऑफ‍िसर (सीआईओ) सौरभ मुखर्जी ने मध्‍यम वर्ग के दर्द को बताया है। उनके मुताबिक, 5 लाख से 1 करोड़ रुपये सालाना कमाने वालों की असली आमदनी में 10 सालों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। महंगाई ने उनकी क्रय शक्ति यानी खरीदने की ताकत को लगभग 50 फीसदी कम कर दिया है। दूसरी तरफ कम आमदनी वालों और बहुत अमीर लोगों की कमाई बढ़ी है। इससे आर्थिक असमानता और बढ़ गई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑटोमेशन से नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। इससे लोगों की आर्थिक चिंताएं बढ़ रही हैं। उपभोक्ता कर्ज में बढ़ोतरी से खर्चे बढ़े हैं। इससे लोगों के खर्च करने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।आमदनी न बढ़ने के बावजूद पिछले पांच सालों में हवाई अड्डों, शॉपिंग मॉल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर खर्च काफी बढ़ा है। मुखर्जी का मानना है कि यह कर्ज और क्रेडिट में बढ़ोतरी के कारण हुआ है। राज शमानी के साथ एक पॉडकास्ट में उन्होंने कहा, ‘खपत बहुत बढ़ गई है, लेकिन पैसा कहां से आया? लोन से।’ उन्होंने बताया कि कई भारतीयों ने अपनी जीवनशैली बनाए रखने के लिए भारी कर्ज लिया है।

द‍िग्‍गज ने दी यह चेतावनी

मुखर्जी ने चेतावनी दी कि उद्योगों में एआई का बढ़ता इस्‍तेमाल नौकरियों में कमी लाएगा, भले ही कंपनियां इसे खुलकर स्वीकार न करें। उन्होंने कहा, ‘मैं जिन भी सीईओ से बात करता हूं, वे बताते हैं कि वे कितना AI इस्तेमाल करेंगे। वे यह नहीं कहते कि वे कितने लोगों को निकालेंगे, लेकिन यह साफ है कि अगर AI इंसानों की जगह लेगा तो नौकरियां जाएंगी।’

आय में असमानता बढ़ने के साथ राजनीतिक रणनीतियां अब कम आय वाले वर्ग पर फोकस हो रही हैं। मुखर्जी ने कहा कि जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) के माध्यम से डायरेक्‍ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) से सरकारों को चुनावी समर्थन मजबूत करने में मदद मिली है। उन्होंने बताया, ‘बड़े पैमाने पर वोट बैंक की राजनीति चल रही है। डायरेक्‍ट बेनिफिट ट्रांसफर अब बहुत लक्षित हैं। इससे सरकारों के लिए मध्यम वर्ग के बजाय कम आय वाले समूहों पर फोकस करना आसान हो गया है।’

आयकर के आंकड़ों के अनुसार, मध्यम वर्ग की आमदनी स्थिर रहने के बावजूद पिछले एक दशक में 1 करोड़ रुपये से अधिक सालाना कमाने वाले अति-धनी लोगों की संख्या सात गुना बढ़ गई है। मुखर्जी ने कहा, ‘ये भारत के नए राजा और रानी हैं। ये देश चलाते हैं, राजनीतिक व्यवस्था को वित्तपोषित करते हैं और लक्जरी बाजारों को चलाते हैं।’

प्रीमियम उत्पादों पर फोकस बढ़ा

लक्जरी आवास, प्रीमियम कारों और महंगे उत्पादों की मांग बढ़ी है, जबकि किफायती आवास और आम लोगों के उत्पादों की मांग कम हुई है। अमीरों के बीच उपभोक्ता अर्थव्यवस्था के केंद्रित होने के कारण ब्रांड अब प्रीमियम उत्पादों पर फोकस कर रहे हैं।

घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर है। कर्ज बढ़ रहा है। नौकरियों में अनिश्चितता है। इससे मध्यम वर्ग पर आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। अगले दशक में अति-धनी लोगों की बढ़ती संपत्ति और मध्यम वर्ग के आर्थिक संघर्षों के बीच की खाई और चौड़ी हो सकती है।

मुखर्जी ने चिंता जताई कि मौजूदा हालात में मध्यम वर्ग के लिए आगे का रास्ता मुश्किल भरा है। उन्होंने कहा कि सरकार को मध्यम वर्ग की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। उनकी आय बढ़ाने के उपाय करने चाहिए। साथ ही, मध्यम वर्ग को भी अपने खर्चों पर कंट्रोल रखना होगा। बचत पर फोकस करना होगा। नौकरी की सुरक्षा के लिए नए कौशल सीखने की भी जरूरत है।

इस बदलते आर्थिक परिदृश्य में मध्यम वर्ग को आने वाले समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उनकी आर्थिक सुरक्षा और जीवनशैली पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। देखना होगा कि सरकार और मध्यम वर्ग मिलकर इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं। इससे ही तय होगा कि भारत का मध्यम वर्ग आगे बढ़ेगा या पिछड़ेगा। यह एक महत्वपूर्ण सवाल है, जिसका जवाब आने वाले समय में ही मिलेगा।

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