बीजेपी नेता ने किया ये दावा
उनका दावा है कि 2011 के बाद लीज का नवीनीकरण नहीं किया गया, फिर भी ज़मीन का इस्तेमाल जारी रहा। इससे कथित तौर पर अवैध लाभ कमाया गया। रमेश के अनुसार, पित्रोदा ने औषधीय अनुसंधान के बहाने जमीन हासिल की थी, लेकिन 2011 के बाद लीज का नवीनीकरण कराने में विफल रहे। इसके बावजूद कथित तौर पर दवा बनाने के काम के लिए जमीन का इस्तेमाल होता रहा। इससे हर साल लगभग 5-6 करोड़ रुपये की अनधिकृत आय होती रही।
ये पांच अधिकारी भी शामिल
शिकायत में पांच अन्य अधिकारियों के नाम भी शामिल हैं। इनमें पूर्व और वर्तमान आईएएस और आईएफएस अधिकारी शामिल हैं: जावेद अख्तर, आर के सिंह, संजय मोहन, एन रविंद्रन कुमार, और एस एस रविशंकर। इन पर कथित रूप से अवैध कब्जे में मदद करने का आरोप है। पित्रोदा ने 1991 में मुंबई में फाउंडेशन फॉर रीवाइटलाइजेशन ऑफ लोकल हेल्थ ट्रैडिशन्स (FRLHT) नाम की संस्था रजिस्टर कराई थी। बाद में उन्हें येलहंका के पास जारकाबांडे कवल में 12.35 एकड़ आरक्षित वन भूमि “औषधीय जड़ी-बूटियों के संरक्षण और अनुसंधान” के लिए लीज पर मिली। यह लीज वन विभाग और केंद्रीय वन मंत्रालय, दोनों की मंजूरी से दी गई थी।
सरकार को हुआ नुकसान
रमेश ने कहा कि 2001 में लीज को 10 साल के लिए बढ़ाया गया था, जो दिसंबर 2011 में समाप्त हो गई। हालांकि, आगे कोई नवीनीकरण नहीं किया गया, जिससे FRLHT का भूमि पर कब्जा अवैध हो गया। शिकायत में आरोप है कि लीज की अवधि समाप्त होने के बावजूद, भूमि का उपयोग संरक्षण और अनुसंधान के बजाय वाणिज्यिक दवा गतिविधियों के लिए किया गया, जिससे बिना कानूनी अधिकार के महत्वपूर्ण वित्तीय लाभ हुआ। रमेश ने बताया कि इस जमीन का सरकारी मार्गदर्शन मूल्य 150 करोड़ रुपये है, जबकि बाजार मूल्य लगभग 600 करोड़ रुपये है। उन्होंने आगे कहा कि भूमि के नवीनीकरण के अलावा, उन्होंने एक आलीशान निवास और एक निजी अनुसंधान केंद्र भी बनाया है। सरकार को इससे कोई फायदा नहीं हुआ है।