Tripureswari Temple: शिव तांडव में जहां गिरा था देवी सती का दाहिना पैर, उस 'त्रिपुरेश्वरी मंदिर' का उद्घाटन करेंगे PM मोदी

त्रिपुरेश्वरी या त्रिपुरा सुंदरी मंदिर

Tripureswari Temple in Tripura: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 अप्रैल को त्रिपुरा के गोमती जिले में पुनर्विकसित ‘त्रिपुरेश्वरी मंदिर’ का उद्घाटन कर सकते हैं. त्रिपुरेश्वरी मंदिर भारत के 51 ‘शक्ति पीठों’ में से एक माना गया है. इस मंदिर को केंद्र सरकार की ‘प्रसाद’ (PRASAD) योजना के तहत 54 करोड़ रुपये की लागत से पुनर्विकसित किया गया है. त्रिपुरेश्वरी मंदिर को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है. त्रिपुरा के इस धाम को लेकर ऐसा कहा जाता है कि यहां पर भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. आइए आपको बताते हैं कि ये मंदिर शक्तिपीठ कैसे बना और इसका धार्मिक महत्व क्या है.

गिरा था माता सती का दाहिना पैर

त्रिपुरेश्वरी मंदिर को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इसमें देवी सती का दायां पैर गिरा था, जिस कारण यह भारत के 51 महापीठों में से एक बन गया. इस त्रिपुरेश्वरी मंदिर में मां त्रिपुर सुंदरी और उनके भैरव (त्रिपुरेश) विराजमान है. ऐसा कहते हैं कि भैरव के दर्शन के बिना मां त्रिपुर सुंदरी का दर्शन अधूरा रहता है.

कामख्या देवी मंदिर की तरह ही त्रिपुर सुदंरी का मंदिर भी तंत्र साधना के लिए काफी मशहूर है. तंत्र साधना के लिए इस मंदिर को बहुत लाभकारी माना जाता है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है. यहां तंत्र साधना करने वाले साधक आते हैं और अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करते हैं.

त्रिपुरा के इस पावन देवी धाम में नवरात्रि के दौरान मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भारी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ऐसा कहा जाता है कि यहां पर दर्शन मात्र से सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है. माता के इस धाम को कूर्भपीठ या माताबाड़ी भी कहा जाता है.

त्रिपुरा में त्रिपुरेश्वरी मंदिर किसने बनवाया था?

देवी के इस धाम का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य ने 1501 में करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि वे बांग्लादेश के चटगांव से लाल काले रंग की कस्ती पत्थर से बनी माता त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति लेकर आए थे और इस मंदिर में स्थापित कर दी थी. बता दें, कि शक्ति पीठ उन स्थानों को कहा जाता है जहां पर शिव तांडव के दौरान देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के तांडव के दौरान देवी सती का दाहिना पैर यहां गिरा था. तभी से इसे देश के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाने लगा.

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