प्लेटो का संत सांप्रदायिक हो गया
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा, आपकी जो कार्यशैली है, उसमें वह सद्भाव कहां है, वह समानता की बात कहां है, वह विचारधारा कहां है? आज भी जब कोई पूछता है, तो मैं कहता हूं कि मुख्यमंत्री जी ‘प्लेटो के संत’ हैं। उन्होंने कहा, आज प्लेटो का वह संत उस विचारधारा से कितनी दूर चला गया है। समानता की बात कहां चली गई, आपसी सद्भाव कहां चला गया, आपस का प्रेम भाव कहां चला गया, हमारे समाज में दूरी कैसे पैदा हो गई? यह हमारी कल्पना से परे है।
उन्होंने ने कहा, आज जब मैं इस ‘प्लेटो के संत’ को देखता हूं, तो सोचता हूं कि हमारा वह ‘प्लेटो का संत’ सांप्रदायिक हो गया है। मैं आपसे कहूंगा कि आप इस पर विचार करें। मैं आलोचना की दृष्टि से नहीं कह रहा हूं। मैं आपको बड़ा बना रहा हूं। ‘प्लेटो का संत’ बहुत बड़ा होता है। वह साधारण नहीं होता। कहा, वाणी ऐसी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए। यह संत की भाषा होती है। मैं फिर आपको ‘प्लेटो का संत’ कहता हूं। अभी जो बिगड़ गया है, उसे जाने दीजिए। अब से ‘प्लेटो का संत’ बनिए।
भाजपा बहुत इठलाती फिर रही
हालांकि, माता प्रसाद पांडेय ने अपने इस बयान के पीछे किसी घटना का जिक्र नहीं किया। हाल में संपन्न विधानसभा उपचुनावों का जिक्र करते हुए कहा, भाजपा बहुत इठलाती फिर रही है कि उसने सभी सीट पर उपचुनाव जीत लिया है। जीतने पर सबको खुशी होती है। चाहे बेईमानी से जीतो या ईमानदारी से जीतो। उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री जी अगर इस तरह से चुनाव व्यवस्था में दिक्कत पैदा होगी, जैसा कि अभी तक होता रहा है, तो लोकतंत्र में विश्वास घट जाएगा। अगर लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा और पुलिस के माध्यम से चुनाव लड़ा जाएगा, प्रशासन के माध्यम से चुनाव लड़ा जाएगा, तो पार्टियों का महत्व आने वाले दिनों में कम हो जाएगा।