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उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से माणा गांव के पास सर्च और रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है. वरिष्ठ पर्वतारोही केशव भट्ट और भुवन चौबे ने ग्लेशियर टूटने के कारण और बचाव के उपाय बताए हैं.

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आखिर क्यों बार-बार टूटते है ग्लेशियर.

हाइलाइट्स

  • उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से माणा गांव में रेस्क्यू अभियान जारी.
  • ग्लेशियर टूटने का कारण हिमपात से बर्फ का दबाव बढ़ना.
  • ग्लेशियर टूटने पर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह.

बागेश्वर: उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने की एक दुखद घटना सामने आई है. घटना की जानकारी मिलते ही माणा गांव के पास सर्च और रेस्क्यू अभियान शुरू कर दिया गया है. इस तरह की आपदाओं को देखकर मन में कई सवाल उठते हैं…आखिर ग्लेशियर क्यों टूटते हैं? इनके टूटने से इतनी तबाही कैसे मच जाती है? एक छोटा सा बर्फ का टुकड़ा कैसे बर्फीले सैलाब में बदल जाता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है? इन सभी सवालों के जवाब हम आपके लिए लेकर आए हैं.

ग्लेशियर टूटने के पीछे क्या कारण होते हैं?
बागेश्वर के वरिष्ठ पर्वतारोही केशव भट्ट ने लोकल 18 को बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में भारी हिमपात के कारण ग्लेशियर पर बर्फ का दबाव बढ़ जाता है. यह ताजा बर्फ धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसकने लगती है, जिससे ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर बर्फीले तूफान (एवलांच) में बदल जाता है. आमतौर पर एवलांच ऊंचे स्थानों से नीचे की ओर आता है. ग्लेशियर टूटने की एक बड़ी वजह गुरुत्वाकर्षण बल भी होती है. खासतौर पर नदी के उद्गम स्थलों के पास यह घटनाएं ज्यादा होती हैं क्योंकि उद्गम वाले इलाके कमजोर होते है. जब ग्लेशियर का एक छोटा हिस्सा टूटता है, तो उसके अंदर जमा बर्फ और पानी नीचे आने का रास्ता बना लेते हैं. यह मिश्रण नीचे आते-आते बर्फीले सैलाब का रूप ले लेता है, जिससे भारी तबाही मच सकती है. यही कारण है कि ट्रैकिंग या पर्वतारोहण के दौरान ऐसी घटनाएं यात्रियों के लिए घातक साबित हो सकती हैं.

एवलांच से बचने के उपाय
बागेश्वर के ही वरिष्ठ पर्वतारोही भुवन चौबे का कहना है कि जब ऐसी स्थितियां बनती हैं या मौसम विभाग की ओर से भारी बर्फबारी का अलर्ट जारी किया जाता है, तो उन इलाकों में जाने से बचना चाहिए. लेकिन अगर कोई ऐसी जगह पर फंस जाता है, तो कुछ जरूरी उपाय अपनाकर जान बचाई जा सकती है. अगर ऊपर से ग्लेशियर टूट रहा हो, तो उसकी दिशा से विपरीत दिशा में जितना संभव हो उतना तेज भागने की कोशिश करनी चाहिए. अगर तेज भागना संभव न हो, तो खुद को बचाने के लिए पास की किसी सुरक्षित जगह पर शरण लेनी चाहिए. अगर ऐसा भी न हो सके, तो जमीन में एक छोटा सा होल बनाकर उसमें घुटनों और हाथों को मोड़कर सिर झुकाना चाहिए और सांस लेने के लिए थोड़ी जगह खुली छोड़नी चाहिए. इससे जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा, जहां से ग्लेशियर टूट रहा हो, अगर वहां के आसपास कोई सुरक्षित ऊंचाई वाला स्थान दिखे, तो तुरंत वहां जाने की कोशिश करनी चाहिए. कहा कि सही जानकारी और सतर्कता अपनाकर इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है.

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Uttarakhand: टूटते ग्लेशियर की तबाही, आखिर क्यों होते हैं बार-बार ऐसे हादसे?

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