देश में अभी कोई चुनाव नहीं है फिर भी संभाजी महाराज और सिख गुरु तेग बहादुर को क्रूरतम तरीके से मारने वाले मुगल शासक औरंगजेब को हीरो बताने की विपक्ष में होड़ मची हुई है. यह सब संभाजी महाराज पर बनी बॉलीवुड की मूवी छावा की ताबड़तोड़ सफलता के बाद से शुरू हुआ है. महाराष्ट्र के कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा कि संभाजी महाराज का क्यों महिमामंडन किया गया और औरंगजेब को छवि के अनुरूप उसे खलनायक बताया गया है. इस बीच सपा विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब को एक महान शासक बताकर विपक्ष के नेताओं के बीच बढ़त बना ली है. सपा नेता अबू आजमी ने औरंगजेब का बचाव करते हुए बयान दिया था कि ‘मैं 17वीं सदी के मुगल बादशाह औरंगजेब को क्रूर, अत्याचारी या असहिष्णु शासक नहीं मानता. इन दिनों फिल्मों के माध्यम से मुगल बादशाह की विकृत छवि बनाई जा रही है.’
आजमी के बयान के बाद विपक्ष विशेषकर कांग्रेस नेताओं में होड़ लगी हुई है कि कौन औरंगजेब को महान और उदार शासक बनाने में कितना आगे है. कांग्रेस नेता और राशिद अल्वी और उदित राज ने पहले औरंगजेब की महानता के गुर गाए अब सांसद इमरान मसूद ने भी ताल ठोककर औरंगजेब को महान शासक बताया है. जाहिर है कि बीजेपी को बैठे बिठाए बढ़ियां मुद्दा मिल गया. आने वाले दिनों में मुंबई में बीएमसी का चुनाव है तो इसी साल बिहार में भी विधानसभा चुनाव है. अब देखने वाली बात है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अपने कोर वोटर्स मुसलमानों को कितना अपने पक्ष में कर पाते हैं.
समाजवादी पार्टी क्यों फायदे में रहेगी
महाराष्ट्र में औरंगजेब पर हो रहे विवाद का मूल कारण वहां होने वाला बीएमसी का चुनाव है . बीएमसी का बजट देश के कई राज्यों से भी बड़ा है. इसलिए यह किसी विधानसभा चुनाव से कम महत्वपूर्ण नहीं होता है. दूसरे आर्थिक राजधानी की स्थानीय समस्याओं को सुलझाने का अधिकार इसी अथॉरिटी के पास होता है इसलिए भी इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है. अगर हम महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में विपक्ष को मिली सफलता का रेशियो देखें तो सक्सेस रेट समाजवादी पार्टी का सबसे बेहतर था. समाजवादी पार्टी ने 9 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. इनमें से 2 पर उसे जीत भी मिली. हालांकि इन दोनों सीटों पर पार्टी का एनडीए गुट के साथ गठबंधन था.यानि कि केवल 2 सीटों पर गठबंधन के बावजूद सपा ने महाराष्ट्र में 22.2 प्रतिशत के सक्सेस रेट से 2 सीटें जीतने में सफल रही. वहीं, कांग्रेस 101 सीटों पर चुनाव लड़ी और 16 सीटें जीत पाई. कांग्रेस का सक्सेस रेट 15.8 प्रतिशत रहा. जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना 95 सीटों पर चुनाव लड़ी और 22.1 प्रतिशत के सक्सेस रेट से 21 सीटें जीतने में सफल रही. शरद पवार की एनसीपी की हालत विपक्षी पार्टियों में सबसे खराब रही. पार्टी 11 प्रतिशत के सक्सेस रेट से सिर्फ 10 सीटें जीतने में सफल रही.
उपरोक्त आंकड़ों की माने तो मुंबई में समाजवादी पार्टी की सक्सेस रेट बीएमसी चुनावों में और बेहतर हो सकती है. क्योंकि बीएमसी के चुनाव क्षेत्र और छोटे होते हैं. मुस्लिम घनी बस्तियों में समाजवादी पार्टी की औरंगजेब रणनीति काम आनी चाहिए.
कांग्रेस के लिए कितना मुश्किल पैदा करेंगे ये नेता
हालांकि औरंगजेब को हीरो माने या खलनायक इस पर कई बार विवाद हो चुका है . पर इस बार अबू आजमी यह मुद्दा भुनाने में अपने सहयोगी दलों से आगे रहे .जाहिर है कि कांग्रेस नेताओं ने भी आजमी का समर्थन किया है पर अपने कोर वोटर्स के बीच तो हीरो अबू आजमी बन ही गए हैं. दूसरे कांग्रेस को वोट देने वाला एक बहुत बड़ा तबका मराठों का भी है. जाहिर है कि कांग्रेस नेता जितना औरंगजेब को हीरो बताएंगे, मराठे उतना ही कांग्रेस से बिदकेंगे. यही नहीं कांग्रेस को बिहार में भी चुनाव लड़ना है. यहां भी कांग्रेस के वोटर बहुत बड़ी संख्या में हिंदू भी हैं. भारतीय जनता पार्टी जिस तरह का प्रचार अभियान चलाती है उससे यही लगता है कि कांग्रेस नेताओं इमरान मसूद , राशिद अल्वी और उदित राज जैसे नेताओं के बयानों से कांग्रेस का नुकसान ज्यादा होने वाला है.
क्या औरंगजेब के इन कृत्यों को कैसे सही ठहरायेंगे राहुल गांधी
औरंगजेब की छवि भारत में एक कट्टरवादी, धर्मांध, क्रूर शासक की रही है. देश में 50 साल शासन करने वाली कांग्रेस के कार्यकाल में पले बढ़े बच्चों ने भी किताबों , फिल्मों, सीरियल्स आदि को देखकर यही मत बनाया कि औरंगजेब खलनायक था, हिंदुओं पर अत्याचार करने वाला था. जवाहरलाल नेहरू ने भी 1946 में प्रकाशित अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में औरंगज़ेब को एक धर्मांध और पुरातनपंथी शख़्स के रूप में पेश किया है. सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर की हत्या, मराठा शासक संभाजी महाराज को क्रूरतम तरीके से मारना, अपने भाई दाराशिकोह को तड़पा तड़पा कर मारना, अपने पिता को कई सालों तक जेल में बंद रखना, हजारों मंदिरों को तोड़ने जैसे अपराध को क्या कांग्रेस झुठला सकती है. अगर नहीं तो फिर इमरान मसूद, राशिद अल्वी, उदित राज जैसे नेताओं को क्यों प्रश्रय दे रही है. क्या इनके खिलाफ पार्टी एक्शन लेने का साहस दिखाएगी? या राहुल गांधी का भी बयान औरंगजेब को रोल मॉडल मानने वाला आयेगा?