
सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (Central Mental Health Authority), राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (State Mental Health Authority) और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (Mental Health Review Board) की स्थापना और उसकी कार्यप्रणाली के बारे में कोर्ट को जानकारी उपलब्ध कराए.
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पीके मिश्रा की डबल बेंच ने 7 फरवरी को पारित अपने आदेश में केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी को इस संबंध में 21 मार्च तक एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. बेंच ने कहा, “कोर्ट में दाखिल हलफनामे में प्राधिकरण और समीक्षा बोर्ड में वैधानिक तथा अनिवार्य नियुक्तियों का भी जिक्र किया जाएगा.”
क्या है पूरा मामला
देश की शीर्ष अदालत एडवोकेट गौरव कुमार बंसल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की जरुरत वाले लोगों के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है. इससे पहले कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि मानसिक बीमारियों से जूझने वाले मरीजों को जंजीर से बांधने की अनुमति नहीं दी जा सकती. साथ ही कोर्ट ने इस तरह के कृत्यों को ‘नृशंस’, ‘अमानवीय’ और संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिलने वाले जीने के अधिकार और व्यक्तिगत आजादी के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया था.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की जरुरत वाले लोगों की गरिमा से किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जा सकता. एडवोकेट गौरव कुमार बंसल ने साल 2018 में दाखिल अपनी याचिका में यह आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के एक आश्रय गृह (Mental Asylum) में मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों (Provisions of the Mental Healthcare Act, 2017) का उल्लंघन करते हुए जंजीरों से बांधकर रखा गया था.
HIV दवाओं की गुणवत्ता पर मांगा जवाब
इस बीच देश की शीर्ष अदालत ने केंद्र के साथ-साथ राज्यों से एचआईवी दवाओं की खरीद और गुणवत्ता पर जवाब मांगा. कोर्ट ने आज सोमवार को एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्यों से देश में एचआईवी मरीजों के इलाज के लिए एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी दवाओं की गुणवत्ता पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच गैर-सरकारी संगठन (NGO) नेटवर्क ऑफ पीपल लिविंग विथ एचआईवी/एड्स और अन्य (Network of People Living with HIV/AIDS and others) की ओर से दाखिल याचिका की सुनवाई कर रही थी.
ARV दवाओं की गुणवत्ता पर चिंता
याचिकाकर्ताओं की ओर से एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (ARV) दवाओं की आपूर्ति और गुणवत्ता पर चिंता जताई गई है. इनकी ओर से पेश वकील ने कोर्ट से कहा कि अब तक सिर्फ 4 राज्यों ने ही उनके द्वारा दायर हलफनामे पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं. हलफनामे में कुछ मुद्दों को रेखांकित किया गया था, जिनमें दवाओं की खरीद की प्रक्रिया और गुणवत्ता शामिल थी. बेंच ने इस पर कहा कि सभी राज्यों को अपनी प्रतिक्रियाएं दाखिल करनी चाहिए.
बेंच ने पिछले साल सितंबर में याचिकाकर्ताओं की ओर से दाखिल हलफनामे पर केंद्र और राज्यों को एक महीने के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा. इस मामले में अगली सुनवाई चार अप्रैल को होगी.
पिछले साल जुलाई में सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सरकार राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (National AIDS Control Programme) के तहत एआरवी थेरेपी केंद्रों के जरिए एचआईवी से ग्रस्त मरीजों को मुफ्त दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा रही है.